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पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/६३

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62/योगिराज श्रीकृष्ण
 

पशु है जिसके भय से वहाँ कोई नहीं जाता। यह सुन कृष्ण और बलराम वहाँ जाने को तैयार हो गए और वहाँ जाकर ईंट और पत्थर चलाने लगे। ईंट और पत्थर की मार से वह पशु चौका और भयभीत हो बाहर निकला (पुराणों में इस पशु का नाम धनुके है, और शकल गदहे की लिखी है)। जब वह सामने आया तो लड़कों ने उस पर ढेले बरसाना आरम्भ किया। यहाँ तक कि वह बिचारा चोटो से मर गया।

(2) ऐसे ही अरिष्ट नामी साँड से लड़ाई का वर्णन है।

(3) तीसरी लड़ाई केशी नामी घोड़े से हुई और कृष्ण ने उस पर जय प्राप्त की। फिर एक लड़ाई (कालिय नाग) से हुई।

कहते हैं कि यमुना के एक भाग में जहाँ एक झील-सी बन गई थी, कालिय नामक एक नाग रहता था जिसके भय से कोई उधर फटकने नहीं पाता था। कृष्ण एक दिन संयोग से वहाँ जा पहुँचे और कालिय ने उन्हें आ घेरा। कृष्ण उससे भिड़ गए और कुछ देर लड़ाई होने पर कालिय घायल होकर भाग निकला।[]

पुराणों में इन्हीं घटनाओं को अमानुषी कहा है और वे इन पशुओं को दैत्य या राक्षस लिखते हैं, पर हमें तो इनमें कोई ऐसी असाधारण बात दिखाई नहीं देती जो इन घटनाओं को मनुष्य कृत मानने में तनिक भी बाधा डालती प्रतीत हो। गाँव में पशु चराने वाले लड़को से आए दिन ऐसी घटनाएँ हुआ करती हैं। ग्रामीण बालकों की मंडली में कृष्ण और बलराम का नेता बन जाना कौन-सी बड़ी बात थी?

एक क्षत्रिय कुल का युवराज, जिसको विधाता ने राज्य करने को बनाया था पर जो काल की कुटिल गति से ग्रामीण चरवाहों की मंडली में आ गया, यदि वह एक छोटी-सी बस्ती में सबका शिरोमणि बन जाये तो इसमें कुछ आश्चर्य नहीं। यदि उस पुरी में उसका डंका बजने लगा तो यह कोई विचित्र बात नहीं थी। सारा बन उसके मीठे गान से गूंज उठा। सर्वत्र उसकी शूरता सराही जाने लगी। गोपों और ग्वालों के लड़कों पर कृष्ण और बलराम राज्य करने लगे। ये दोनों राजकुमार जंगली बालक सेना के सेनापति बन बैठे। ये उनकी बनावटी लड़ाइयाँ आगे का परिचय देती थीं जब उन्हें सचमुच युद्ध की रचना करनी होगी। उनकी मनमोहिनी वाणी मानो उस वशीकरण के सदृश थी जिससे उन्होंने सारी सृष्टि को अपने वश में कर लिया था। जिससे मानो स्वर्ग का द्वार खुल गया और मोक्ष का मार्ग सुगम हो गया था। जिस बालक ने बचपन में बनैले पशुओं का वध करके मनुष्यों का उपकार करना सीखा हो वह वयप्राप्त होकर अत्याचारी दुष्टात्माओं को अत्याचार या अनुचित कार्य करने से कैसे न रोकता? वह अपने अन्तिम समय तक यही शिक्षा देता रहा कि दुष्टों को, चाहे वे पशु हों या मनुष्य, सदा दण्ड देते रहना चाहिए जिससे परमेश्वर की निरीह प्रजा उनके अत्याचारों से सुरक्षित रहे।


  1. इसके दो अर्थ हो सकते हैं, एक यह कि यमुना के किसी भाग में 'कालिय' नामक कोई सर्प रहता था और कृष्ण ने उसे वहाँ से भगा दिया। दूसरा यह कि नाग जाति का कोई सरदार 'कालिय' नामक वहाँ रहता था जो गोपा को कुछ हानि पहुँचाता था। कृष्ण ने इस सरदार को लड़ाई मे हराकर उस जंगल में से भगा दिया। मि॰ पॉल यही दूसरा अर्थ समझाते है क्योंकि पुराणों में कालिय को मनुष्य माना है और उसकी स्त्रियों की कान की बालियाँ तथा दूसरे आभूषणों का वर्णन किया है