पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/६६

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रासलीला का रहस्य /165
 


भट्ट ने 'व्रजयात्रा' और रासलीला की नीव डाली। जितनी पुस्तके राधा के प्रेम विषय की मिलती है वे प्रायः सब इसी पंथ के गोस्वामियों की रवी हुई है।

परमेश्वर जाने इन लोगों ने कृष्ण के जीवन को क्यों कलंकित कर दिया। जब उससे पहले के ग्रंथों में इन बातों का कहीं वर्णन नहीं, तो इन पर विश्वास करने का हमें कोई कारण नहीं दीखता।

दूसरे, कई एक पुराणों के अनुसार कृष्ण की अवस्था उस समय जब व मथुरा में आये हैं) 12 वर्ष की थी तब यह कैसे संभव हो सकता है कि 12 वर्ष की अल्प आयु में उन्हे यह सब बातें प्रकट होती और उनके पास तरुण स्त्रियाँ भोग-विलास की इच्छा से आती और कामातुर हो उनसे अपना सतीत्व नष्ट कराती। तीसरे, महाभारत में प्राय: ऐसे स्थान आये है जहाँ कृष्ण को उनके शत्रुओ ने अनेक दुर्वचन कहे हैं और उनके जीवन के सब दोष गिनाये है। उदाहरणार्थ राजसूय यज्ञ के समय शिशुपाल क्रोध में आकर कृष्ण के अवगुण बताने लगा और उसके बचपन के सब दोष कह गया, पर उनके दुराचारी या विषयी होने का तनिक इशारा भी नहीं किया। क्या यह सम्भव था कि कृष्ण की जीवनी इतनी गंदी हो (जैसा कि ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है) और शिशुपाल क्रोधवश सभा के बीच उनके सब छोटे-बड़े अवगुण प्रकट करे, और इसका (जो महादोष कहा जा सकता है) वर्णन तक न करे? वही अवसर तो उनके प्रकट करने का था, क्योंकि भीष्म पितामह ने सारी सभा में उसी को उच्चासन देना चाहा था।

कृष्ण उनके समकालीन थे। यदि वास्तव में कृष्ण में ये दोष होते तो यह कैसे संभव था कि ऐसे-ऐसे धर्मात्मा महान् पुरुष उनका ऐसा सम्मान करते और सारे आर्यावर्त में उसका यो मान होता? संस्कृत की प्राय: सभी पुस्तकों में कृष्ण को 'जितेन्द्रिय' लिखा है। 'जितेन्द्रिय उसको कहते है जिसने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया हो। यदि कृष्णा का वास्तव में राधा या मानवती से प्रेम था तो इन पुस्तकों में उन्हे जितेन्द्रिय क्यों लिखा? रासलीला के नृत्य के विषय मे प्राचीन ग्रंथों से ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय वृत्त बनाकर नाचने की प्रथा सारे भारत में थी। बहुत-से ग्रंथकार तो कहते हैं कि स्त्री-पुरुष मिलकर वैसे ही नाचते थे जैसे कि आजकल अंगरेजों में उसका चलन है।

हाँ, 'चीरहरण लीला' की कथा भागवत में है, विष्णुपुराण, महाभारत और हरिवंश मे इसका वर्णन नहीं है। आजकल के पौराणिक पंडित तो इसको आलंकारिक बतलाते हैं। इसकी कथा इस प्रकार है। एक दिन गोपियाँ किसी सरोवर में नहा रही थीं। उनके वस्त्र किनारे पर रखे थे। कृष्ण संयोग से वहाँ आ पहुँचे। वे इसी ताक में छिपे बैठे थे और वे उन वस्त्रो को लेकर एक वृक्ष पर जा बैठे। जब गोपियाँ स्नान कर जल के बाहर आईं तो देखती हैं कि उनके वस्त्र नहीं हैं। इधर-उधर ढूँढ़ने पर देखा कि कृष्ण महाशय एक वृक्ष पर बैठे हैं और वस्त्रों की गठड़ी पास रख छोड़ी है।

तब गोपियाँ अपने वस्त्र उनसे माँगने लगी और हाथ जोड़कर विनती करने लगीं । तब कृष्ण ने कहा कि “नंगी मेरे सामने आओ तो दूँगा!" अत: वे सब नंगी (वस्त्रहीन) उनके सामने