आई तब उन महाशय ने उनके वस्त्र लौटा दिये। आजकल के पौराणिक टीकाकार इसका सार यों निकालते हैं कि यहाँ पर 'कृष्ण' शब्द परमेश्वर के लिए प्रयुक्त हुआ है। यमुना से तात्पर्य परमेश्वर का प्रेम और गोपियों के वस्त्र से अभिप्राय सांसारिक पदार्थों से है। अत: इस कथा से यह भाव निकलता है कि परमात्मा के प्रेम में मग्न होकर मनुष्य को चाहिए कि किसी सांसारिक पदार्थ का विचार न करे, वरन् उनका ध्यान छोड़ दे। पर खेद है कि मनुष्य प्रेम की नदी में स्नान करके भी उन्हीं पदार्थों के पीछे दौड़ता है। परमात्मा उसे पश्चात्ताप दिलाने हेतु उन पदार्थो को उठा लेता है जिससे उसका संबंध है। यहाँ तक कि वह मनुष्य अपने इष्ट पदार्थो के लिए कोलाहल मचाता है। परमात्मा उसकी पुकार सुनकर उसे अपने समीप बुलाता है। जब वह वस्त्रहीन आने में संकोच करता है तो परमात्मा उसको यह उपदेश करता है कि मेरे पास नग्न आने में संकोच मत कर। मेरे पास आने में अपना तन वस्त्र से ढकने की आवश्यकता नहीं! स्वयं को सांसारिक पदार्थो से पृथक कर मेरे पास आ। तब मैं तेरी सारी कामनाएँ परी करूँगा और तन ढकने को वस्त्र दूंगा।
यह वाक्य रचना चाहे कितनी ही उत्तम क्यों न हो पर इससे भ्रम पड़ने की आशंका है। यदि इन सब कथाओं में ऐसी अत्युक्ति बाँधी गई है तो हमारी राय है कि इन अत्युक्तियों ने हिन्दुओं को बड़ी हानि पहुँचाई है और उनके आचार व्यवहार को भी बिगाड़ दिया है। परमेश्वर के लिए अब उनको छोड़ो और सीधी रीति से परब्रह्म परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित होकर भक्ति और प्रेम के फूल चुनो। कम-से-कम कृष्ण जैसे महापुरुष को कलंकित मत करो। और किसी विचार से नही तो अपना पूज्य और मान्य समझकर ही उन पर दया करो। उन्हें पाप कर्म का नायक मत बनाओ और उन महानुभावों से बचो जो इस महापुरुष के नाम पर तुम्हारा व्रत बिगाड़ रहे हैं और तुमको और तुम्हारी ललनाओं को नरकगामी बनाते