पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/७८

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तेरहवाँ अध्याय
कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह

द्रौपदी के स्वयंवर का समाचार जब धृतराष्ट्र के कानों तक पहुँचा तो उसने भीष्म की सलाह से विदुर को द्रुपद के दरबार में भेजा यह कहकर कि वह वहाँ से पाण्डवों को उनकी विवाहिता पत्नी सहित ले आवे। अब विदुर राजा द्रुपद के दरबार मे पहुँचे और उन्होंने अपना संदेश कहा। वहाँ कृष्णचन्द्र भी मौजूद थे। द्रुपद ने विदुर से कहा कि इसकी व्यवस्था श्रीकृष्ण से लेनी चाहिए। यदि उनकी सम्मति हो कि युधिष्ठिर तथा अन्य पाण्डवों को अपने घर हस्तिनापुर जाना चाहिए तो मैं भेजने में कुछ हस्तक्षेप नहीं करूँगा। कृष्ण ने यही सम्मति दी कि अब पाण्डुपुत्रों को स्वदेश ही जाना चाहिए। यह सुनकर द्रुपद ने उन्हें जाने की आज्ञा दी। ऐसा जान पड़ता है कि कृष्णचन्द्र भी इस यात्रा में उनके साथ थे। वे सब हस्तिनापुर पहुँच गये। राजा धृतराष्ट्र ने अपने पुत्रों को शान्त करने के लिए पाण्डवों को राज्य बाँट दिया और उनसे कह दिया कि वे खांडवप्रस्थ के वन में जा बसें।

यह सुनकर पाण्डव उस वन मे चले गये और वहाँ उन्होंने इन्द्रप्रस्थ नगर बसाया।

पाठक! यह इन्द्रप्रस्थ वही शहर है जो आजकल दिल्ली के नाम से प्रसिद्ध है। पर जहाँ आज दिल्ली बसी है वहाँ से इन्द्रप्रस्थ की बस्ती कुछ दूरी पर थी।

जब पाण्डव इन्द्रप्रस्थ में जा बसे और आनन्द से रहने लगे तो कृष्णचन्द्र इस धर्म के काम को सम्पूर्ण कर द्वारिकापुरी को लौट आये।

कुछ काल बीतने पर अर्जुन जब द्वारिका गये तो वहाँ कृष्ण ने उनका बड़ा सत्कार किया। राज्य के कर्मचारी और नगर के धनिक लोगों ने भी आदरपूर्वक स्वागत किया।

अर्जुन[१] अभी द्वारिका में ही थे कि वहाँ की एक पहाड़ी 'गिरनार' पर एक मेला लगा। इस मेले में भ्रमण करते अर्जुन ने सुभद्रा को देखा। सुभद्रा कृष्ण की सहोदरा बहन और परम सुन्दर थी। अर्जुन उसे देखकर प्रेमासक्त हो गया और टकटकी बाँधकर देखने लगा। कृष्ण भी इस भेद को समझ गये। उन्होंने हँसी-हँसी में सुना भी दिया कि "जो रात-दिन जंगल-जंगल विचरता फिरता है उसे प्रेम-प्रहसनों से क्या काम!"

 

  1. अर्जुन इन दिनों 12 वर्ष के लिए घर छोड़कर बनवास में था क्योंकि पाँचों भाइयों में प्रतिज्ञा हुई थी कि यदि कोई भाई किसी दूसरे की उपस्थिति में द्रौपदी के कमरे में आवे तो उसको 12 वर्ष घर त्यागना पड़ेगा। एक दिन किसी कार्यवश अर्जुन को अपने शस्त्र लेने के लिए द्रौपदी के कमरे में जाना पड़ा जबकि वहाँ युधिष्ठिर मौजूद थे। इसलिए उन्हें 12 वर्ष घर-निकाला मिला। कुछ काल तक इधर-उधर घूमकर अर्जुन द्वारिका जा पहुँचा। कृष्ण की वार्ता में इसी का संदर्भ है