पृष्ठ:योग प्रदीप.djvu/३०

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आधारक लोक और अंग समानुष्य अपने-आपको नहीं जानते और अपनी सत्ताके विभिन्न अंशोंको एक दूसरेसे पृथकरूपमें देखना उन्होंने नहीं सीखा है। इन सबको वे एक अन्तःकरण करके ही जानते हैं, क्योंकि मनकी अनुभूति और समझसे वे इन्हें समझते या अनुभव करते हैं । इसीसे मनुष्य अपनी ही हालतों और कार्योंको नहीं समझ पाते और जो कुछ समझते भी हैं सो केवल ऊपरी हालत और कार्यको समझते [१९]