पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/१०९

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बालकों पर प्रेम की भाँति द्वेष का असर भी अधिक होता है। जब से मिठुआ और घीसू को मालूम हुआ था कि ताहिरअली हमारा मैदान जबरदस्ती ले रहे हैं, तब से दोनों उन्हें अपना दुश्मन समझते थे। चतारी के राजा साहब और सूरदास में जो बातें हुई थीं, उनकी उन दोनों को खबर न थी। सूरदास को स्वयं शंका थी कि यद्यपि राजा साहब ने आश्वासन दिया, पर शीघ्र ही यह समस्या फिर उपस्थित होगी। जॉन सेवक साहब इतनी आसानी से गला छोड़नेवाले नहीं हैं। बजरंगी, नायकराम आदि भी इसी प्रकार की बातें करते रहते थे। मिठुआ और घीसू इन बातों को बड़े प्रेम से सुनते, और उनकी द्वेपाग्नि और भी प्रचंड होती थी। घीसू जब भैंस लेकर मैदान जाता तो जोर-जोर से पुकारता-"देग्नें, कौन हमारो जमीन लेता है, उठाकर ऐसा पटकूँ कि वह भी याद करे। दोनों टांग तोड़ दूँगा। कुछ खेल समझ लिया है!” वह जरा था भी कड़े-दम, कुश्ती लड़ता था। बजरंगी खुद भी जवानी में अच्छा पहलवान था। घीसू को वह शहर के पहलवानों की नाक बना देना चाहता था, जिससे पंजाबी पहलवानों को भी ताल ठोकने की हिम्मत न पड़े, दूर-दूर जाकर दंगल मारे, लोग कहें-“यह बजरंगी का बेटा है।" अभी से घीसू को अखाड़े भेजता था। घीसू अपने घमंड में समझता था कि मुझे जो पेच मालूम हैं, उनसे जिसे चाहूँ, गिरा दें। मिठुआ कुश्ती तो न लड़ता था; पर कभी-कभी अखाड़े की तरफ जा बैठता था। उसे अपनी पहलवानी की डींग मारने के लिए इतना काफी था। दोनों जब ताहिरअली को कहीं देखते, तो सुना-सुनाकर कहते-“दुश्मन जाता है, उसका मुँह काला।" मिठुआ कहता-"जै शंकर, काँटा लगे न कंकर, दुश्मन को तंग कर।" घीसू कहता-"बम भोला, बैरी के पेट में गोला, उससे कुछ न जाय बोला।"

ताहिरअली इन छोकरों की छिछोरी बातें सुनते, और अनसुनी कर जाते। लड़कों के मुँह क्या लगे। सोचते-"कहीं ये सब गालियाँ दे बैठे, तो इनका क्या बना लूँगा।" वे दोनों समझते, डर के मारे नहीं बोलते; और भी शेर हो जाते। घीसू मिठुआ पर उन पंचों का अभ्यास करता, जिनसे वह ताहिरअलो को पटकेगा। पहले यह हाथ पकड़ा, फिर अपनी तरफ खींचा; तब बह हाथ गरदन में डाल दिया, और अडंगी लगाई, बम चित। मिठुआ फौरन् गिर पड़ता था, और उसे इस पेच के अद्भुत प्रभाव का विश्वास हो जाता था।

एक दिन दोनों ने सलाह की-"चलकर मियाँजी के लड़कों की खबर लेनी चाहिए।” मैदान में जाकर जाहिर गौर जाबिर को खेलने के लिए बुलाया, और खूब चपतें लगाई। जाबिर छोटा था, उसे मिठुआ ने दावा। जाहिर और घीसू का जोड़ था; लेकिन घीसू अखाड़ा देखे हुए था, कुछ दाँव-पेच जानता ही था, आन-की-आन में जाहिर को दबा बैठा। मिठुआ ने जाबिर के चुटकियाँ काटनी शुरू की। बेचारा रोने लगा।