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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/११०

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रंगभूमि


घीसू ने जाहिर को कई घिस्से दिये, वह भी चौंधिया गया; जब देखा कि यह तो मार ही डालेगा, तो उसने फरियाद मचाई। इन दोनों का रोना सुनकर नन्हाँ सा साबिर एक पतली-सी टहनी लिये, अकड़ता हुआ पीड़ितों की सहायता करने आया, और घीस को टहनी से मारने लगा। जब इस शस्त्र प्रहार का घीसू पर कुछ असर न हुआ, तो उसने इससे ज्यादा चोट करनेवाला बाण निकाला-घीसू पर थूकने लगा। घीसू ने जाहिर को छोड़ दिया, और साबिर के दो-तीन तमाचे लगाये। जाहिर मौका पाकर फिर उठा, और अवको ज्यादा सावधान होकर घीसू से चिमट गया। दोनों में मल्ल-युद्ध होने लगा। आखिर घीसू ने उसे फिर पटका और मुश्क चढ़ा दी। जाहिर को अब रोने के सिवा कोई उपाय न सूझा, जो निर्बलों का अंतिम आधार है। तोनों की आर्त ध्वनि माहिरअली के कान में पहुँची। वह इस समय स्कूल जाने को तैयार थे। तुरन्त किताबें पटक दी और मैदान की तरफ दौड़े। देखा, तो जाबिर और जाहिर नीचे पड़े हाय-हाय कर रहे हैं और साबिर अलग बिलबिला रहा है! कुलीनता का रक्त खौल उठा; मैं सैयद, पुलिस के अफसर का बेटा, चुंगी के मुहर्रिर का भाई, अँगरेजी के आठ दरजे का विद्यार्थी! यह मूर्ख, उजड्ड, अहीर का लौंडा, इसकी इतनी मजाल कि मेरे भाइयों को नीचा दिखाये! घीसू के एक ठोकर लगाई और मिठुआ के कई तमाचे। मिठुआ तो रोने लगा; किंतु घीसू चिमड़ा था। जाहिर को छोड़कर उठा, हौसले बढ़े हुए थे दो मोरचे जीत चुका था, ताल ठोककर माहिरअली से भी लिपट गया। माहिर का सफेद पाजामा मैला हो गया, आज ही जूते में रोगन लगाया था, उस पर गर्द पड़ गई; सँवारे हुए बाल बिखर गये, क्रोधोन्मत्त होकर घीसू को इतनी जोर से धक्का दिया कि वह दो कदम पर जा गिरा। साबिर, जाहिर, जाबिर, सब हँसने लगे। लड़कों को चोट प्रतिकार के साथ ही गायब हो जाती है। घीसू इनको हँसते देखकर और भी झुँझलाया; फिर उठा और माहिरअली से लिपट गया। माहिर ने उसका टेटुआ पकड़ा, और जोर से दबाने लगे। घीसू ने समझा, अब मरा, यह बिना मारे न छोड़ेगा। मरता क्या न करता, माहिर के हाथ में दाँत जमा दिये; तीन दाँत गड़ गये, खून बहने लगा। माहिर चिल्ला उटे, उसका गला छोड़कर अपना हाथ छुड़ाने का ल करने लगे; मगर घीम किसी भौति न छोड़ता था। खून बहते देखकर तीनों भाइयों ने फिर रोना शुरु किया। जैनब और रकिया यह हंगामा सुनकर दरवाजे पर आ गई। दखा तो समरभमि रक्त से साबित हो रही है, गालियाँ देती हुई ताहिरअली के पास आई। जैनब ने तिरस्कार-भाव में कहा---"तुम यहाँ बैठे खालें नोच रहे हो, कुछ दीन-दुनिया की भी खबर है! वहां वह अहीर का लौंडा हमारे लड़कों का खून-खच्चर किये डालता है। मुए को पकड़ पाती, तो खून ही चूस लेती।"

रकिया—"मुआ आदमी है कि देव-बच्चा है! माहिर के हाथ में इतनी जोर से दाँत काटा है कि खून के फौवारे निकल रहे हैं। कोई दूसरा मर्द होता, तो इसी बात पर मुए को जीता गाड़ देता।"