पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/११९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
११९
रंगभूमि


इनके तो ऐसी चोटें लगी हैं कि शायद महीनों चलने-फिरने लायक न हों, कंधे की हड्डी ही टूट गई है।"

महेंद्र कुमारसिंह स्त्रियों का बड़ा सम्मान करते थे। उनका अपमान होते देखकर श में आ जाते थे। रौद्र रूप धारण करके बोले-"सब जनाने में घुस गये?"

जॉन सेवक-"किवाड़ तोड़ना चाहते थे, मगर चमारों ने धमकाया, तो हट गये।"

महेंद्र कुमार-"कमीने! स्त्रियों पर अत्याचार करना चाहते थे!"

जॉन सेवक—“यही तो इस ड्रामा का सबसे लज्जास्पद अंश है।"

महेंद्रकुमार-लज्जास्पद नहीं महाशय, घृणास्पद कहिए।”

जॉन सेवक—"अब यह वेचारे कहते हैं कि या तो मेरा इस्तीफा लीजिए, या गोदाम की रक्षा के लिए चौकीदारों का प्रबन्ध कीजिए। स्त्रियाँ इतनी भयभीत हो गई हैं कि वहाँ एकक्षण भी नहीं रहना चाहतीं। यह सारा उपद्रव उसी अंधे की बदौलत हो रहा है।"

महेंद्र कुमार—"मुझे तो वह बहुत ही गरीब, सीधा-सा आदमी मालूम होता है; मगर है छँटा हुआ। उसी की दीनता पर तरस खाकर मैंने निश्चय किया था कि आपके लिए कोई दूसरी जमीन तलाश करूँ। लेकिन जब उन लोगों ने शरारत पर कमर बाँधी है और आपको जबरदरती वहाँ से हटाना चाहते हैं, तो इसका उन्हें अवश्य दंड मिलेगा।"

जॉन सेवक—"बस, यही बात है, वे लोग मुझे वहाँ से निकाल देना चाहते हैं। अगर रिआयत की गई, तो मेरे गोदाम में जरूर आग लग जायगी।"

महेंद्रकुमार—मैं खूब समझ रहा हूँ। यों मैं स्वयं जनवादी हूँ ओर उस नीति का हृदय से समर्थन करता हूँ, पर जनवाद के नाम पर देश में जो अशांति फैली हुई है, उसका मैं घोर विरोधी हूँ। ऐसे जनवाद से तो धनवाद, एकवाद, सभी वाद अच्छे हैं। आप निश्चिंत रहिए।"

इसी भाँति कुछ देर और बातें करके और राजा साहब को खूब भरकर जॉन सेवक विदा हुए। रास्ते में ताहिरअली सोचने लगे-साहब को मेरी दुर्गति से अपना स्वार्थ सिद्ध करने में जरा भी संकोच नहीं हुआ। क्या ऐसे धनी-मानी, विशिष्ट, विचारशील-विद्वान् प्राणी भी इतने स्वार्थ भक्त होते हैं?

जॉन सेवक अनुमान से उनके मन के भाव ताड़ गये। बोले—"आप सोच रह होंगे, मैंने बातों में इतना रंग क्यों भरा, केवल घटना का यथार्थ वृत्तांत क्यों न कह मुनाया; किंतु सोचिए, बिना रंग भरे मुझे यह फल प्राप्त हो सकता? संसार में किसी काम का अच्छा या बुरा होना उसकी सफलता पर निर्भर है। एक व्यक्ति राजसत्ता का विरोध करता है। यदि अधिकारियों ने उसका दमन कर दिया, तो वह राजद्रोही कहा जाता है, और प्राण-दंड पाता है। यदि उसका उद्देश्य पूरा हो गया, तो वह अपनी जाति का उद्धारकर्ता और विजयो समझा जाता है, उसके स्मारक बनाये जाते हैं। सफलता में दोषों को मिटाने की विलक्षण शक्ति है। आप जानते हैं, दो साल पहले मुस्तफा कमाल ज्या था? बागी, देश उसके खून का प्यामा था। आज वह अपनी जाति का प्राण है।