गाड़ी अभी धीरे-धीरे चल रही थी। इतने में ताहिरअली ने पुकारा-"हुजूर, यह जमीन पण्डा की नहीं, सूरदास की है। यह कह रहे हैं।"
साहब ने गाड़ी रुकवा दी, लजित नेत्रों से मिसेज सेवक को देखा, गाड़ी से उतरकर सूरदास के पास आये, और नम्र भाव से बोले-"क्यों सूरदास, यह जमीन तुम्हारी है?"
सूरदास-"हाँ हुजूर, मेरी ही है। बाप-दादों की इतनी ही तो निसानी बच रही है।"
जॉन सेवक-"तब तो मेरा काम बन गया। मैं चिंता में था कि न-जाने कौन इसका मालिक है। उससे सौदा पटेगा भी या नहीं। जब तुम्हारी है, तो फिर कोई चिंता नहीं। तुम-जैसे त्यागी और सजन आदमी से ज्यादा झंझट न करना पड़ेगा। जब तुम्हारे पास इतनी जमीन है, तो तुमने यह भेष क्यों बना रखा है?"
सूरदास-"क्या करूँ हुजूर, भगवान् की जो इच्छा है, वह कर रहा हूँ।"
जॉन सेवक-"तो अब तुम्हारी विपत्ति कट जायगी। बस, यह जमीन मुझे दे दो। उपकार का उपकार, और लाभ का लाभ। मैं तुम्हें मुँह-माँगा दाम दूँगा।"
सूरदास-"सरकार, पुरुखों की यही निसानी है, बेचकर उन्हें कौन मुँह दिखाऊँगा?"
जॉन सेवक-"यहीं सड़क पर एक कुआँ बनवा दूँगा। तुम्हारे पुरुखों का नाम चलता रहेगा।"
सूरदास-"साहब, इस ज़मीन से मुहल्लेवालों का बड़ा उपकार होता है। कहीं एक अंगुल-भर चरी नहीं है। आस-पास के सब ढोर यहीं चरने आते हैं। बेच दूँगा, तो ढोरों के लिए कोई ठिकाना न रह जायगा।”
जॉन सेवक-"कितने रुपये साल चराई:के पाते हो?"
सूरदास--"कुछ नहीं, मुझे भगवान् खाने-भर को यों ही दे देते हैं, तो किसी से चराई क्या लूँ? किसी का और कुछ उपकार नहीं कर सकता, तो इतना ही सही।"
जॉन सेवक-(आश्चर्य से) "तुमने इतनी जमीन यों ही चराई के लिए छोड़ रखी है? सोफिया सत्य कहती थी कि तुम त्याग की मूर्ति हो। मैंने बड़ों-बड़ों में इतना त्याग नहीं देखा। तुम धन्य हो! लेकिन जब पशुओं पर इतनी दया करते हो, तो मनुष्यों को कैसे निराश करोगे? मैं यह जमीन लिए बिना तुम्हारा गला न छोड़ेंगा।"
सूरदास-"सरकार, यह जमीन मेरी है जरूर, लेकिन जब तक मुहल्लेवालों से पूछ न लूँ, कुछ कह नहीं सकता। आप इसे लेकर क्या करेंगे?"
जॉन सेवक--"यहाँ एक कारखाना खोलूँगा, जिससे देश और जाति की उन्नति होगी, गरीबों का उपकार होगा, हजारों आदमियों को रोटियाँ चलेंगी। इसका यश भी तुम्ही को होगा।"
सूरदास-"हुजूर, मुहल्लेवालों से पूछे बिना मैं कुछ नहीं कह सकता।"
जॉन सेवक-"अच्छी बात है, पूछ लो। मैं फिर तुमसे मिलूँगा। इतना समझ रखो कि मेरे साथ सौदा करने में तुम्हें घाटा न रहेगा। तुम जिस तरह से खुश होगे, उसी