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रंगभूमि


है, यह कथा सुनते ही जामे से बाहर हो जायँगे। फिर किसी तरह उनका मुँह सीधा न होगा। सारी रात जॉन सेवक इसी उधेड़-बुन में पड़े रहे। एकाएक उन्हें एक बात सूझी। चेहरे पर मुस्किराहट की झलक दिखाई दी। संभव है, यह चाल सीधी पड़ जाय, त फिर बिगड़ा हुआ काम सँवर जाय। सुबह को हाजिरी खाने के बाद फिटन तैयार कराई और पाँड़ेपुर चल दिये।

नायकराम ने पैरों में पट्टियाँ बाँध ली थीं, शरीर में हल्दी की मालिश कराये हुए थे, एक डोली मँगवा रखी थी और राजा महेंद्र कुमार के पास जाने को तैयार थे। अभी मुहूर्त में दो-चार पल की कसर थी बजरंगी और जगधर भी साथ जाने वाले थे। सहसा फिटन पहुँची, तो लोग चकित हो गये। एक क्षण में सारा मोहल्ला आकर जमा हो गया, आज क्या होगा?

जॉन सेवक नायकराम के पास जाकर बोले—“आप ही का नाम नायकराम पाँडे है न? मैं आपसे कल की बातों के लिए क्षमा माँगने आया हूँ। लड़के ने ज्यों ही मुझसे यह समाचार कहा, मैंने उसको खूब डॉटा, और रात ज्यादा न हो गई होती, तो मैं उसी वक्त आपके पास आया होता। लड़का कुमार्गी और मूर्ख है। कितना ही चाहता हूँ कि उसमें जरा आदमीयत आ जाय, पर ऐसी उलटी समझ है कि किसी बात पर ध्यान ही नहीं देता। विद्या पढ़ने के लिए विलायत भेजा, वहाँ से भी पास हो आया; पर सज्जनता न आई। उसकी नादानी का इससे बढ़कर और क्या सबूत होगा कि इतने आदमियों के बीच में वह आपसे बेअदबी कर बैठा। अगर कोई आदमी शेर पर पत्थर फेंके, तो उसकी वीरता नहीं, उसका अभिमान भी नहीं, उसकी बुद्धिहीनता है। ऐसा प्राणी दया के योग्य है; क्योंकि जल्द या देर में वह शेर के मुँह का ग्रास बन जायगा। इस लौंडे की ठीक यही दशा है। आपने मुरौवत न की होती, क्षमा से न काम लिया होता, तो न जाने क्या हो जाता। जब आपने इतनी दया की है, तो दिल से मलाल भी निकाल डालिए।"

नायकराम चारपाई पर लेट गये, मानो खड़े रहने में कष्ट हो रहा है, और बोले— "साहब, दिल से मलाल तो न निकलेगा, चाहे जान निकल जाय। इसे चाहे हम लोगों की मुरौवत कहिए, चाहे उनकी तकदीर कहिए कि वह यहाँ से बेदाग चले गये; लेकिन मन्याल तो दिल में बना हुआ है। वह तभी निकलेगा, जब या तो मैं न रहूँगा या वह न रहेग। रही भलमनसी, भगवान् ने चाहा, तो जल्द ही सीख जायँगे। बस, एक बार हमारे हाथ में फर पड़ जाने दीजिए। हमने बड़े-बड़ों को भलामानुस बना दिया, उनकी क्या हस्ती है!"

जॉन सेवक—“अगर आप इतनी आसानी से उसे भलमनसी सिखा सके, तो कहिए, आप ही के पास भेज दूँ, मैं तो सब कुछ करके हार गया।"

नायकराम—“बोलो भाई बजरंगी, साहब की बातों का जवाब दो, मुझसे तो बोला नहीं जाता, रात कराह-कराहकर काटी है। साहब कहते हैं, माफ कर दो, दिल में मलाल