दोनों महिलाओं में इसी तरह नोक-झोंक होती रही। दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाना चाहती थीं; दोनों एक दूसरे के मनोभावों को समझती थीं। कृतज्ञता या धन्यवाद के शब्द किसी के मुँह से न निकले। यहाँ तक कि जब मिसेज सेवक बिदा होने लगी, तो रानी उनको पहुँचाने के लिए कमरे के द्वार तक भी न आई। अपनी जगह पर बैठे-बैठे हाथ बढ़ा दिया और अभी मिसेज सेवक कमरे ही में थीं कि अपना समाचार-पत्र पढ़ने लगीं।
मिसेज सेवक सोफिया के पास आई, तो वह तैयार थी। किताबों के गट्ठर बँधे हुए थे। कई दासियाँ इधर-उधर इनाम के लालच में खड़ी थीं। मन में प्रसन्न थीं, किसी तरह यह बला टली। सोफिया बहुत उदास थी। इस घर को छोड़ते हुए उसे दुःख हो रहा था। उसे अपने उद्दिष्ट स्थान का पता न था। उसे कुछ मालूम न था कि तकदीर कहाँ ले जायगी, क्या-क्या विपत्तियाँ झेलनी पड़ेंगी, जीवन-नौका किस घाट लगेगी। उसे ऐसा मालूम हो रहा था कि विनय सिंह से फिर न मुलाकात होगी, उनसे सदा के लिए बिछुड़ रही हूँ। रानी की अपमान-भरी बातें, उनकी भर्त्सना और अपनी भ्रांति, सब कुछ भूल गई। हृदय के एक-एक तार से यही ध्वनि निकल रही थी-"अब विनय से फिर भेंट न होगी।"
मिसेज सेवक बोलीं-"कुँवर साहब से भी मिल लूँ।"
सोफिया डर रही थी कि कहीं मामा को रात की घटना की खबर न मिल जाय, कुँवर साहब कहीं दिल्लगी-ही-दिल्लगी में कह न डाले। बोली-"उनसे मिलने में देर होगी, फिर मिल लीजिएगा।"
मिसेज सेवक-"फिर किसे इतनी फुर्सत है!"
दोनों कुँवर साहब के दीवानखाने पहुँची। यहाँ इस वक्त स्वयंसेवकों की भीड़ लगी हुई थी। गढ़वाल-प्रांत में दुर्भिक्ष का प्रकोप था। न अन्न था, न जल। जानवर मरे जाते थे, पर मनुष्यों को मौत भी न आती थी; एड़ियाँ रगड़ते थे, सिमकते थे। यहाँ से पचास स्वयंसेवकों का एक दल पीड़ितों का कष्ट निवारण करने के लिए जाने वाला था। कुँवर साहब इस वक्त उन लोगों को छाँट रहे थे; उन्हें जरूरी बातें समझा रहे थे। डॉक्टर गंगुली ने इस वृद्धावस्था में भी इस दल का नेतृत्व स्वीकार कर लिया था। दोनों आदमी इतने व्यस्त थे कि मिसेज सेवक की ओर किसी ने ध्यान न दिया। आखिर वह बोलीं-"डॉक्टर साहब, आपका कब जाने का विचार है?"
कुँवर साहब ने मिसेज सेवक की तरफ देखा और बड़े तपाक से आगे बढ़कर हाथ मिलाया, कुशल-समाचार पूछा और ले जाकर एक कुर्सी पर बैठा दिया। सोफिया माँ के पीछे जाकर खड़ी हो गई।
कुँवर साहब—"ये लोग गढ़वाल जा रहे हैं। आपने पत्रों में देखा होगा, वहाँ लोगों पर कितना घोर संकट पड़ा हुआ है!”