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रंगभूमि

मिसेज सेवक-"खुदा इन लोगों का उद्योग सफल करे। इनके त्याग को जितनी प्रशंसा की जाय, कम है। मैं देखती हूँ, यहाँ इनकी खासी तादाद है।"

कुँवर साहब-"मुझे इतनी आशा न थी, विनय की बातों पर विश्वास न होता था, सोचता था, इतने वालंटियर कहाँ मिलेंगे। सभी को नवयुवकों के निरुत्साह का रोना रोते हुए देखता था। इनमें जोश नहीं है, त्याग नहीं है, जान नहीं है, सब अपने स्वार्थ-चिंतन में मतवाले हो रहे हैं। कितनी ही सेवा-समितियाँ स्थापित हुई; पर एक भी पनप न सकी। लेकिन अब मुझे अनुभव हो रहा है कि लोगों को हमारे नवयुवकों के विषय में कितना भ्रम हुआ था। अब तक तीन सौ नाम दर्ज हो चुके हैं। कुछ लोगों ने आजीवन सेवा-धर्म पालन करने का व्रत लिया है। इनमें कई आदमी तो हजारों रुपये माहवार की आय पर लात मारकर आये हैं। इन लोगों का सत्साहस देखकर मैं बहुत आशावादी हो गया हूँ।"

मिसेज सेवक-"मिस्टर क्लार्क कल आपकी बहुत प्रशंसा कर रहे थे। ईश्वर ने चाहा, तो आप शीघ्र ही सी० आई० ई० होंगे और मुझे आपको बधाई देने का अवसर मिलेगा।"

कुँवर साहब- (लजाते हुए) "मैं इस सम्मान के योग्य नहीं हूँ। मिस्टर क्लार्क मुझे इस योग्य समझते हैं, तो वह उनकी कृपा-दृष्टि है। मिस सेवक, तैयार रहना, कल ३ बजे के मेल से ये लोग सिधारेंगे। प्रभु ने भी आने का वादा किया है।"

मिसेज सेवक—"सोफी तो आज घर जा रही है। (मुस्किराकर).शायद आपको जल्द ही इसका कन्यादान देना पड़े। (धीरे से) मिस्टर क्लार्क जाल फैला रहे हैं।"

सोफिया शर्म से गड़ गई। उसे अपनी माता के ओछेपन पर क्रोध आ रहा था—"इस बात का ढिंढोरा पीटने की क्या जरूरत है? क्या यह समझती हैं कि मि० क्लार्क का नाम लेने से कुँवर साहब रोब में आ जायेंगे?"

कुँवर साहब—"बड़ी खुशी की बात है। सोफी, देखो, हम लोगों को और विशेषतः अपने गरीब भाइयों को भूल न जाना। तुम्हें परमात्मा ने जितनी सहृदयता प्रदान की है, वैसा ही अच्छा अवसर भी मिल रहा है। हमारी शुभेच्छाएँ सदैव तुम्हारे साथ रहेंगी। तुम्हारे एहसान से हमारी गरदन सदा दबी रहेगी। कभी-कभी हम लोगों को याद करती रहना। मुझे पहले न मालूम था; नहीं तो आज इन्दु को अवश्य बुला भेजता। खैर देश की दशा तुम्हें मालूम है। मिस्टर क्लार्क बहुत ही होनहार आदमी हैं। एक दिन जरूर यह इस देश के किसी प्रांत के विधाता होंगे। मैं विश्वास के साथ यह भविष्यवाणी कर सकता हूँ। उस वक्त तुम अपने प्रभाव, योग्यता और अधिकार से देश को बहुत कुछ लाभ पहुँचा सकोगी। तुमने अपने स्वदेशवासियों की दशा देखी है, उनकी दरिद्रता का तुम्हें पूर्ण अनुभव है। इस अनुभव का उनकी सेवा और सुधार में सद्व्यय करना।"