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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/१९८

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रंगभूमि


दशा इतनी शोचनीय है। मैं अब स्वयं राजा साहब से मिलूँगा और यह सारा वृत्तांत उनसे कहूँगा।"

वीरपाल-"महाराज, कहीं ऐसी भूल भी न कीजिएगा, नहीं तो लेने के देने पड़ जायगे। यह अंधेर-नगरी है। राजा में इतना ही विवेक होता, तो राज्य की यह दशा ही क्यों होती १ वह उलटे आप ही के सिर हो जायगा।"

विनय-"इसकी चिन्ता नहीं। सन्तोष तो हो जायगा कि मैंने अपने कर्तव्य का पालन किया! मुझे तुमसे भी कुछ कहना है। तुम्हारा यह विचार कि इन हत्याकाण्डों से अधिकारिवर्ग प्रजापरायण हो जायगा; मेरी समझ में निर्मूल और भ्रम-पूर्ण है। रोग का अन्त करने के लिए रोगी का अन्त कर देना न बुद्धि-संगत है, न न्याय-संगत। आग आग से शान्त नहीं होती, पानी से शान्त होती है।"

वीरपाल-"महाराज, हम आपसे तर्क तो नहीं कर सकते; पर इतना जानते हैं कि विष विष ही से शान्त होता है। जब मनुष्य दुष्टता की चरम सीमा पर पहुँच जाता है, उसमें दया और धर्म लुप्त हो जाता है, जब उसके मनुष्यत्व का सर्वनाश हो जाता है, जब वह पशुओं के-से आचरण करने लगता है, जब उसमें आत्मा की ज्योति मलिन हो जाती है, तब उसके लिए केवल एक ही उपाय शेष रह जाता है, और वह है प्राण-दंड। व्याघ्र-जैसे हिंसक पशु सेवा से वशीभूत हो सकते हैं! पर स्वार्थ को कोई दैविक शक्ति परास्त नहीं कर सकती।"

विनय-"ऐसी शक्ति है तो। हाँ, केवल उसका उचित उपयोग करना चाहिए।"

विनय ने अभी बात भी न पूरी की थी कि अकस्मात् किसी तरफ से बन्दूक की आवाज कानों में आई। सवारों ने चौंककर एक दूसरे की तरफ देखा और एक तरफ घोड़े छोड़ दिये। दम-के-दम में घोड़े पहाड़ों में जाकर गायब हो गये। विनय की समझ में कुछ न आया कि बन्दूक की आवाज कहाँ से आई और पाँचो सवार क्यों भागे।

डाकिये से पूछा-"ये सब किधर जा रहे हैं?"

डाकिया--"बन्दूक की आवाज ने किसी शिकार की खबर दी होगी, उसी तरफ गये हैं। आज किसी सरकारी नौकर की जान पर जरूर बनेगी।"

विनय-"अगर यहाँ के कर्मचारियों का यही हाल है, जैसा इन्होंने बयान किया, तो मुझे बहुत जल्द महाराज की सेवा में जाना पड़ेगा।"

डाकिया-"महाराज, अब आपसे क्या परदा है; सचमुच यही हाल है। हम लोग तो टके के मुलाजिम ठहरे, चार पैसे ऊपर से न कमायें तो बाल-बच्चों को कैसे पालें; तलब है, वह साल-साल भर तक नहीं मिलती, लेकिन यहाँ तो जो जितने ही ऊँचे ओहदे पर है, उसका पेट भी उतना ही बड़ा है।”

दस बजते-बजते दोनों आदमी जसवंतनगर पहुँच गये। विनय बस्ती के बाहर ही एक वृक्ष के नीच बैठ गये और डाकिये से जाने को कहा। डाकिये ने उनसे अपने घर चलने का बहुत आग्रह किया, जब वह किसी तरह न राजी हुए, तो अपने घर से उनके