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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/२१७

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रंगभूमि


लिए बड़े-बड़े वादे कर लिये। जब अंधे पर किसी का कुछ असर न हुआ, तो मेरे वादे बेकार हो गये।”

महेंद्रकुमार—"अजी, आपकी तो जीत-ही-जीत है; गया तो मैं। इतनी जमीन आपको दस हजार से कम में न मिलती। धर्मशाला बनवाने में आपके इतने ही रुपये लगेंगे। मिट्टी तो मेरी खराब हुई। शायद जीवन में यह पहला ही अवसर है कि मैं जनता की आँखों में गिरता हुआ नजर आता हूँ। चलिए, जरा पाँड़ेपुर तक हो आयें। संभव है, मुहल्लेवालों के समझाने का अब भी कुछ असर हो।"

मोटर पाड़ेपुर की तरफ चली। सड़क खराब थी; राजा साहब ने इंजीनियर को ताकीद कर दी थी कि सड़क की मरम्मत का प्रबंध किया जाय; पर अभी तक कहीं कंकड़ भी न नजर आता था। उन्होंने अपनी नोटबुक में लिखा, इसका जवाब तलब किया जाय। चुंगीघर पहुँचे, तो देखा कि चुंगी का मुंशी आराम से चारपाई पर लेटा हुआ है और कई गाड़ियाँ सड़क पर रवन्ने के लिए खड़ी हैं। मुंशीजी ने मन में निश्चय कर लिया है कि गाड़ी-पीछे १) लिये बिना रवन्ना न दूँगा; नहीं तो गाड़ियों को यहीं रात-भर खड़ी रखूँगा। राजा साहब ने जाते-ही-जाते गाड़ीवालों को रवन्ना दिला दिया और मुंशीजी के रजिस्टर पर यह कैफियत लिख दी। पाँड़ेपुर पहुंचे, तो अँधेरा हो चला था। मोटर रुकी। दोनों महाशय उतरकर मंदिर पर आये। नायकराम लुंगी बाँधे हुए भंग घोट रहे थे, दौड़े हुए आये। बजरंगी नाँद में पानी भर रहा था, आकर खड़ा हो गया। सलाम-बंदगी के पश्चात् जॉन सेवक ने नायकराम से कहा-“अंधा तो बहुत बिगड़ा हुआ है।"

नायकराम—"सरकार, बिगड़ा तो इतना है कि जिस दिन डौंडी पिटी, उस दिन से घर नहीं आया। सारे दिन सहर में घूमता है; भजन गाता है और दुहाई मचाता है।”

राजा साहब—"तुम लोगों ने उसे कुछ समझाया नहीं?"

नायकराम—"दीनबंधु, अपने सामने किसी को कुछ समझता ही नहीं। दूसरा आदमी हो, तो मार-पीट की धमकी से सीधा हो जाय; पर उसे तो डर-भय जैसे छू ही नहीं गया। उसी दिन से घर नहीं आया।"

राजा साहब—"तुम लोग उसे समझा-बुझाकर यहाँ लाओ। सारा संसार छान आये हो; एक मूर्ख को काबू में नहीं ला सकते?”

नायकराम—"सरकार, समझाना-बुझाना तो मैं नहीं जानता, जो हुकुम हो, हाथ-पैर तोड़कर बैठा हूँ, आप ही चुप हो जायगा।"

राजासाहब—"छी, छी, कैसी बातें करते हो! मैं देखता हूँ, यहाँ पानी का नल नहीं है। तुम लोगों को तो बहुत कष्ट होता होगा। मिस्टर सेवक, आप यहाँ नल पहुँचाने का ठेका ले लिजिए।"

नायकराम—बड़ी दया है दीनबंधु, नल आ जाय, तो क्या कहना है।"