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रंगभूमि

राजा साहब-"तुम लोगों ने कभी इसके लिए दरख्वास्त ही नहीं दी।"

नायकराम---"सरकार, यह बस्ती हद-बाहर है।"

राजा साहब-"कोई हरज नहीं, नल लगा दिया जायगा।"

इतने में ठाकुरदीन ने आकर कहा- “सरकार, मेरी भी कुछ खातिरी हो जाय।" यह कहकर उसने चाँदी के वरक में लिपटे हुए पान के बीड़े दोनों महानुभावों की सेवा में अर्पित किये। मि० सेवक को, अँगरेजी वेष-भूपा रखने पर भी, पान से घणा न थी, शौक से खाया। राजा साहब मुँह में पान रखते हुए बोले-"क्या यहाँ लालटेन नहीं हैं? अँधेरे में तो बड़ी तकलीफ होती होगी?”

ठाकुरदीन ने नायकराम की ओर मार्मिक दृष्टि से देखा, मानों यह कह रहा है कि मेरे बीड़ों ने यह रंग जमा दिया। बोला-"सरकार, हम लोगों की कौन सुनता है, अब हजूर की निगाह हो गई है, तो लग ही जायँगी। बस, और कहीं नहीं, इसी मंदिर पर एक लालटेन लगा दी जाय। साधु-महात्मा आते हैं, तो अँधेरे में उन्हें कष्ट होता है। लालटेन से मंदिर की सोभा बढ़ जायगी। सब आपको आसीरबाद देंगे।"

राजा साहब-"तुम लोग एक प्रार्थना-पत्र भेज दो।"

ठाकुरदीन-“हजूर के परताप से दो-एक साधु-संत रोज ही आते रहते हैं। अपने से जो कुछ हो सकता है, उनका सेवा-सत्कार करता हूँ। नहीं तो यहाँ और कौन पूछने-वाला है! सरकार, जब से चोरी हो गई, तब से हिम्मत टूट गई।"

दोनों आदमी मोटर पर बैठनेवाले ही थे कि सुभागी एक लाल साड़ी पहने, चूंघट निकाले, आकर जरा दूर पर खड़ी हो गई, मानों कुछ कहना चाहती है। राजा साहब ने पूछा-"यह कौन है? क्या कहना चाहती है?"

नायकराम—“सरकार, एक पासिन है। क्या है सुभागी, कुछ कहने आई है?"

सुभागी--(धीरे से) "कोई सुनेगा?"

राजा साहब—"हाँ, हाँ, कह। क्या कहती है?"

सुभागी—"कुछ नहीं मालिक, यही कहने आई थी कि सूरदास के साथ बड़ा अन्याय हुआ है। अगर उनकी फरियाद न सुनी गई, तो वह मर जायँगे।"

जॉन सेवक—"उसके मर जाने के डर से सरकार अपना काम छोड़ दे?"

सुभागी—"हजूर, सरकार का काम परजा को पालना है कि उजाड़ना? जब से यह जमीन निकल गई है, बेचारे को न खाने की सुध है, न पीने की। हम गरीब औरतों का तो वही एक आधार है, नहीं तो मुहल्ले के मरद कभी औरतों को जीता न छोड़ते। और मरदों की मिलीभगत है। मरद चाहे औरत के अंग-अंग, पोर-पोर काट डाले, कोई उसको मने नहीं करता। चोर-चोर मौसेरे भाई हो जाते हैं। वही एक बेचारा था कि हम गरीबों की पीठ पर खड़ा हो जाता था।"

भैरो भी आकर खड़ा हो गया था। बोला—"हजूर, सूरे न होता तो यह आपके सामने खड़ी न होती। उसी ने जान पर खेलकर इसकी जान बचाई थी।"