सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/२२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२२८
रंगभूमि

सोफी—"उसे किसी से इन दुष्टों के आने की खबर मिल गई होगी।"

ताहिर—"हुजूर, मेरा तो कयास है कि उसे इल्म गैब है।"

सोफी—(मुस्किराकर) "आपने पापा को इसका इत्तिला नहीं दी?"

ताहिर—"हुजूर, तब से मौका ही नहीं मिला। खुद बाल-बच्चों को तनहा छोड़कर नहीं जा सकता। आदमो सब पहले ही भाग गये थे। इसी फिक्र में खड़ा था कि इजूर की मोटर नजर आई।"

क्लार्क—"यह अन्धा जरूर कोई असाधारण पुरुष है।"

सोफी--"तुम उससे दो-चार बातें करके देखो। उसके आध्यात्मिक और दार्शनिक विचार सुनकर चकित हो जाओगे। साधु भी है और दार्शनिक भी। कहीं हम उसके विचारों को व्यवहार में ला सकते, तो निश्चय सांसारिक जीवन सुखमय हो जाता। जाहिल है, बिलकुल निरक्षर; लेकिन उसका एक-एक वाक्य विद्वानों के बड़े-बड़े ग्रंथों पर भारी है।"

मोटर चली, तो सोफी बोली—“आप लोग ऐसे साधुजनों पर भी अन्याय करने से बाज नहीं आते, जो अपने शत्रुओं पर एक कंकड़ भी उठाकर नहीं फेंकता! प्रभु मसीह में भी तो यही गुण सर्व-प्रधान था।”

क्लार्क--"प्रिये, अव लजित न करो। इसका प्रायश्चित्त निश्चय होगा।"

मोफी--"राजा साहब इसका घोर विरोध करेंगे।"

क्लार्क—"थुह! उनमें इतना नैतिक साहस नहीं है। वह जो कुछ करते हैं, हमारा रुख देखकर करते हैं। इसा वजह से उन्हें कभी असफलता नहीं होती। हाँ, उनमें यह विशेष गुण है कि वह हमारे प्रस्तावों का रूपांतर करके अपना काम बना लेते हैं और उन्हें जनता के सामने ऐसी चतुरता से उपस्थित करते हैं कि लोगों की दृष्टि में उनका सम्मान बढ़ जाता है। हिन्दुस्तानी रईसों और राजनीतिज्ञों में आत्मविश्वास का बड़ा अभाव होता है। वे हमारी सहायता से वह कर सकते हैं, जो हम नहीं कर सकते; पर हमारी सहायता के बिना कुछ भी नहीं कर सकते।"

मोटर सिगरा आ पहुँची। सोफिया उतर पड़ी। क्लार्क ने उसे प्रेम की दृष्टि से देखा, हाथ मिलाया और चले गये।