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रंगभूमि


और मुझे रुपये लाकर दे दिये। बस, उसने मेरी गरीबी पर दया की, और कुछ नहीं। उससे मेरा और कोई नाता नहीं है।"

भैरो-"अच्छा, यह सब तो सुन चुका, नाम तो बताओ।"

सूरदास-"देखो, तुमने कसम खाई है।"

भैरो-"हाँ भाई, कसम से मुकरता थोड़ा ही हूँ।"

सूरदास-"तुम्हारी घरवाली और मेरी बहन सुभागी।"

इतना सुनना था कि भैरो जैसे पागल हो गया। घर में दौड़ा हुआ गया और माँ से बोला-"अम्माँ, इसी डाइन ने मेरे रुपये चुराये थे। सूरदास अपने मुँह से कह रहा है। इस तरह मेरा घर मूसकर यह चुडैल अपने धींगड़ों का घर भरती है। उस पर मुझसे उड़ती थी। देख तो, तेरी क्या गत बनाता हूँ। बता, सूरदास झूठ कहता है कि सच?"

सुभागी ने सिर झुकाकर कहा-"सूरदास झूठ बोलते हैं।"

उसके मुँह से बात पूरी न निकलने पाई थी कि भैरो ने लकड़ी खींचकर मारी। वार खाली गया। इससे भैरो का क्रोध और भी बढ़ा। वह सुभागी के पीछे दौड़ा। सुभागी ने एक कोठरी में घुसकर भीतर से द्वार बंद कर लिया। भैरो ने द्वार पीटना शुरू किया। सारे मुहल्ले में हुल्लड़ मच गया, भैरो सुभागी को मारे डालता है। लोग दौड़ ‘पड़े। ठाकुरदीन ने भीतर जाकर पूछा-"क्या है भैरो, क्यों किवाड़ तोड़े डालते हो? भले आदमी, कोई घर के आदमी पर इतना गुस्सा करता है!" भैरो-“कैसा घर का आदमी जी! ऐसे घर के आदमी का सिर काट लेना चाहिए, जो दूसरों से हँसे। आखिर मैं काना हूँ, कतरा हूँ, लूला हूँ, लँगड़ा हूँ, मुझमें क्या ऐब है, जो यह दूसरों से हँसती है? मैं इसकी नाक काटकर तभी छोड़ेगा। मेरे घर जो चोरी हुई थी, वह इसी चुडैल की करतूत थी। इसी ने रुपये चुराकर सूरदास को दिये थे।"

ठाकुरदीन-"सूरदास को!"

भैरो—"हाँ-हाँ, सूरदास को। बाहर तो खड़ा है, पूछते क्यों नहीं। उसने जब देखा कि अब चोरी न पचेगी, तो लाकर सब रुपये मुझे दे गया है।"

बजरंगी—"अच्छा, तो रुपये सुभागी ने चुराये थे!"

लोगों ने भैरो को ठंडा किया और बाहर खींच लाये। यहाँ सूरदास पर टिप्पणियाँ होने लगों। किसी की हिम्मत न पड़ती थी कि साफ-साफ कहे। सब-के-सब डर रहे थे कि कहीं मेम साहब से शिकायत न कर दे। पर अन्योक्तियों द्वारा सभी अपने मनोविचार प्रकट कर रहे थे। सूरदास को आज मालूम हुआ कि पहले कोई मुझसे डरता न था, पर दिल में सब इज्जत करते थे; अब सब-के-सब मुझसे डरते हैं, पर मेरी सच्चो इज्जत किसी के दिल में नहीं है। उसे इतनी ग्लानि हो रही थी कि आकाश से वज्र गिरे और मैं यहीं जल-भुन जाऊँ।

ठाकुरदीन में धीरे से कहा—"सूरे तो कभी ऐसा न था। आज से नहीं, लड़कपन से देखते हैं।"