सूरदास ने भैरो से कहा-"यहाँ और कोई तो नहीं है? मुझे तुमसे एक भेद की बात कहनी है।"
भैरो-"कोई नहीं है, कहो, क्या बात कहते हो?"
सूरदास-"तुम्हारे चोर का पता मिल गया।"
भैरो-"सच, जवानी कसम?"
सूरदास-"हाँ, सच कहता हूँ। वह मेरे पास आकर तुम्हारे रुपये रख गया। और तो कोई चीज नहीं गई थी?"
भैरो-"मुझे जलाने आये हो, अभी मन नहीं भरा?"
सूरदास-"नहीं, भगवान् से कहता हूँ, तुम्हारी थैली मेरे घर में ज्यों-की-त्यों पड़ी मिली।"
भैरो-"बड़ा पागल था, फिर चोरी काहे को की थी?"
सूरदास-"हाँ, पागल ही था और क्या।"
भैरो-“कहाँ है, जरा देखू तो।"
सूरदास ने थैली कमर से निकालकर भैरो को दिखाई। भैरो ने लपककर थैली ले ली। ज्यों-की-त्यों बंद थी।
सूरदास-“गिन लो, पूरे हैं कि नहीं।"
भैरो-“हैं, पूरे हैं, सच बताओ, किसने चुराया था?"
भैरो को रुपये मिलने की उतनी खुशी न थी, जितनी चोर का नाम जानने की उत्सुकता। वह यह देखना चाहता था कि मैंने जिस पर शक किया था, वही है कि कोई और।
सूरदास-"नाम जानकर क्या करोगे? तुम्हें अपने माल से मतलब है कि चोर के नाम से?"
भैरो-"नहीं, तुम्हें कसम है, बता दो, है इसी मुहल्ले का न?"
सूरदास-"हाँ, है तो मुहल्ले ही का; पर नाम न बताऊँगा।"
भैरो-“जवानी की कसम खाता हूँ, उससे कुछ न कहूँगा।"
सूरदास-“मैं उसको वचन दे चुका हूँ कि नाम न बताऊँगा। नाम बता दूँँ, और तुम अभी दंगा करने लगो, तब?"
भैरो-"विसवास मानो, मैं किसी से न बोलूँँगा। जो कसम कहो, खा जाऊँ। अगर जबान खोलूँ, तो समझ लेना इसके असल में फरक है। बात और बाप एक है। अब और कौन कसम लेना चाहते हो?"
सूरदास-"अगर फिर गये, तो यहीं तुम्हारे द्वार पर सिर पटककर जान दे दूँँगा।"
भैरो-"अपनी जान क्यों दे दोगे, मेरी जान ले लेना; चूँ न करूँगा।"
सूरदास-“मेरे घर में एक बार चोरी हुई थी, तुम्हें याद है न! चोर को ऐसा
सुभा हुआ होगा कि तुमने मेरे रुपये लिये हैं। इसी से उसने तुम्हारे यहाँ चोरी की,