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रंगभूमि

क्लार्क—"वहाँ कैसा दफ्तर, एजेंट का काम दफ्तर में बैठना नहीं है। वह वहाँ बादशाह का स्थानापन्न होता है।"

सोफिया—"अच्छा, जिस रियासत में चाहो, जा सकते हो?"

क्लार्क—"हाँ, केवल पहले कुछ लिखा-पढ़ी करनी पड़ेगी। तुम कौन-सी रियासत पसंद करोगी?”

सोफिया—"मुझे तो पहाड़ी देशों से विशेष प्रेम है। पहाड़ों के दामन में बसे हुए गाँव, पहाड़ों की गोद में चरनेवाली भेड़ें और पहाड़ों से गिरनेवाले जल-प्रपात, ये सभी दृश्य मुझे काव्यमय प्रतीत होते हैं। मुझे मालूम होता है, वह कोई दूसरा ही जगत् है, "इससे कहीं शांतिमय और शुभ्र। शैल मेरे लिए एक मधुर स्वप्न है। कौन-कौन-सी रियासतें पहाड़ों में हैं?"

क्लार्क—“भरतपुर, जोधपुर, कश्मीर, उदयपुर......।"

सोफिया—"बस तुम उदयपुर के लिए लिखो। मैंने इतिहास में उदयपुर की वीर-कथाएँ पढ़ी हैं और तभी से मुझे उस देश को देखने की बड़ी लालसा है। वहाँ के राजपूत कितने वीर, कितने स्वाधीनता-प्रेमी, कितने आन पर जान देनेवाले होते थे! लिखा है, चित्तौड़ में जितने राजपूतों ने वीर गति पाई, उनके जनेऊ तौले गये, तो ७५ मन निकले। कई हजार राजपूत-स्त्रियाँ एक साथ चिता पर बैठकर राख हो गई। ऐसे प्रण-वीर प्राणी संसार में शायद ही और कहीं हों।”

लार्क—"हाँ, वे वृत्तांत मैंने भी इतिहासों में देखे हैं। ऐसी वीर जाति का जितना सम्मान किया जाय, कम है। इसीलिए उदयपुर का राजा हिंदूराजों में सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है। उनकी वीर-कथाओं में अतिशयोक्ति से बहुत काम लिया गया है, फिर भी यह मानना पड़ेगा कि इस देश में इतनी जाँबाज और कोई जाति नहीं है।"

सोफिया—"तुम आज ही उदयपुर के लिए लिखो और संभव हो, तो हम लोग एक मास के अंदर यहाँ से प्रस्थान कर दें।”

क्लार्क—"लेकिन कहते हुए डर लगता है...तुम मेरा आशय समझ गई होगी... यहाँ से चलने के पहले मैं तुमसे वह चिर-सिंचित.........मेरा जीवन......"

सोफिया ने मुस्किराकर कहा-"समझ गई, उसके प्रकट करने का कष्ट न उठाओ। इतनी मंदबुद्धि नहीं हूँ; लेकिन मेरी निश्चय-शक्ति अत्यंत शिथिल है, यहाँ तक कि सैर करने के लिए चलने का निश्चय भी मैं घंटों के सोच-विचार के बाद करती हूँ। ऐसे महत्त्व के विषय में, जिसका संबन्ध जीवन-पर्यंत रहेगा, मैं इतनी जल्द कोई फैसला नहीं कर सकती। बल्कि साफ तो यों है कि अभी तक मैं यही निर्णय नहीं कर सकी कि मुझ जैसी निर्द्वंद, स्वाधीन-विचार-प्रिय स्त्री दांपत्य जीवन के योग्य है भी या नहीं। विलियम, मैं तुमसे हृदय की बात कहती हूँ, गृहिणी-जीवन से मुझे भय मालूम होता है। इसलिए जब तक तुम मेरे स्वभाव से भली भाँति परिचित न हो जाओ, मैं तुम्हारे हृदय में झूठी आशाएँ पैदा करके तुम्हें धोखे में नहीं डालना चाहती। अभी मेरा और तुम्हारा परि-