यह कहकर सोफिया ने खिड़की से झाँका, तो मि० क्लार्क अभी तक खड़े मिसेज' सेवक से बातें कर रहे थे। मोटरकार भी खड़ी थी। वह तुरन्त बाहर आकर मि० क्लार्क से बोली—“विलियम, आज मामा से बातें करने ही में रात खत्म कर दोगे? मैं सैर करने के लिए तुम्हारा इन्तजार कर रही हूँ।"
कितनी मंजुल वाणी थी ! कितनी मनोहारिणी छवि से, कमल-नेत्रों में मधुर हास्य का कितना जादू भरकर, यह प्रेम-याचना की गई थी! क्लार्क ने क्षमा-प्रार्थी नेत्रों से सोफिया को देखा—यह वही सोफिया है, जो अभी एक ही क्षण पहले मेरी हँसी उड़ा रही थी! तब जल पर आकाश की श्यामल छाया थी, अब उसी जल में इन्दु की सुन-हरी किरणें नृत्य कर रही थीं, उसी लहराते हुए जल की कंपित, विहसित, चंचल छटा उसको आँखों में थी। लजित होकर बोले—"प्रिये, क्षमा करो, मुझे याद ही न रही, बातों में देर हो गई।"
सोफिया ने माता को सरल नेत्रों से देखकर कहा—"मामा, देखती हो इनकी निष्ठुरता, यह अभी से मुझसे तंग आ गये हैं। मेरी इतनी सुधि भी न रही कि झूठे ही पूछ लेते, सैर करने चलोगी?"
मिसेज सेवक—"हाँ, विलियम, यह तुम्हारी ज्यादती है। आज सोफी ने तुम्हें रंगे हाथों पकड़ लिया। मैं तुम्हें निर्दोष समझती थी और सारा दोष उसी के सिर रखती थी।"
क्लार्क ने कुछ मुस्किराकर अपदी झेप मिटाई और सोफिया का हाथ पकड़कर मोटर की तरफ चले। पर अब भी उन्हें शंका हो रही थी कि मेरे हाथ में जो नाजुक कलाई है, वह कोई वस्तु है या केवल कल्पना और स्वप्न। रहस्य और भी दुर्भेद्य होता हुआ दिखाई देता था। यह कोई बन्दर को नचानेवाला मदारी है या बालक, जो बन्दर को दूर से देखकर खुश होता है, उसे मिठाई देता है, पर बन्दर के निकट आते ही भय से चिल्लाने लगता है।
जब मोटर चली, तो सोफिया ने कहा—“एजेन्ट के अधिकार तो बड़े होते हैं, वह चाहे, तो किसी रियासत के भीतरी मुआमिलों में भी हस्तक्षेप कर सकता है, क्यों?"
क्लार्क ने प्रसन्न होकर कहा—“उसका अधिकार सर्वत्र, यहाँ तक कि राजा के महल के अन्दर भी, होता है। रियासत का कहना ही क्या, वह राजा के खाने, सोने, आराम करने का समय तक नियत कर सकता है। राजा किससे मिले, किससे दूर रहे, किसका आदर करे, किसकी अवहेलना करे, ये सब बातें एजेंट के अधीन हैं। वह यहाँ तक निश्चय कर सकता है कि राजा की मेज पर कौन-कौन-से प्याले आयेंगे, राजा के लिए कैसे और कितने कपड़ों की जरूरत है, यहाँ तक कि वह राजा के विवाह का भी निश्चय करता है। बस, यों समझो कि वह रियासस का खुदा होता है।"
सोफिया—तब तो वहाँ सैर-सपाटे का खूब अवकाश मिलेगा? यहाँ की भाँति दिन-भर दफ्तर में तो न बैठना पड़ेगा?"