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रंगभूमि


इंदु रानी के पीछे खड़ी थी। बोली-"विनय-पत्र पर मेरे ही उद्योग से इतने आदमियों के नाम आये थे। मुझे तो विश्वास है, यह उसी की करामात है।"

नायकराम अब तक चुपचाप बैठे हुए थे। उनकी समझ में न आता था कि यहाँ क्या बातें हो रही हैं। टेलीफोन की बात उनकी समझ में आई। अब उन्हें ज्ञात हुआ कि लोग सफलता का सेहरा अपने-अपने सिर बाँध रहे हैं। ऐसे अवसर पर भला वह कब चूकनेवाले थे। बोले-"सरकार, यहाँ भी गाफिल बैठनेवाले नहीं हैं। सिबिल सारजंट के कान में यह बात डाल दी थी कि राजा साहन की ओर से एक हजार लठैत जवान तैयार बैठा हुआ है। उ का हुक्म बहाल न हुना, तो खून-खच्चर हो जायगा, सहर में तूफान आ जायगा। उन्हों। उन्होंने लाट साहब से यह बात जरूर ही कही होगी।"

महेंद्रकुमार-"मैं तो समझता हूँ, यह तुम्हारी धामकियों ही की करामात है।"

नायकराम-"धर्मावतार, धमकियाँ कैसी, खून की नदी बह जाती। आपका ऐसा अकबाल है कि चाहूँ, तो एक बार सहर लुटवा हूँ। ये लाल साफे खड़े मुँह ताकते रह जायँ।"

प्रभु सेवक ने हास्य-भाव से कहा-"सच पूछिए, तो यह उस कविता का फल है, जो मैंने 'हिंदुस्तान-रिव्यू' में लिखी थी।"

रानी-"प्रभु, तुमने यह चपत खूब लगाई। डॉक्टर गंगुली अपना सिर सुहला रहे हैं। क्यों डॉक्टर, बैठी या नहीं? एक तुच्छ सफलता पर आप लोग इतने फूले नहीं समाते! इसे विजय न समझिए, यह वास्तव में पराजय है, जो आपको अपने अभीष्ट से कोसों दूर हटा देती है, आपके गले में फंदे को और भी मजबूत कर देती है। बाजे-वाले सरदी में बाजे को आग से सेंकते हैं, केवल इसीलिए कि उसमें से कर्णमधुर स्वर निकले। आप लोग भी सेंके जा रहे हैं, अब चोटों के लिए पीठ मजबूत कर लीजिए।"

यह कहती हुई जाह्नवी अंदर चली गई; पर उनके जाते ही इस तिरस्कार का असर भी जाता रहा, लोग फिर वही राग अलापने लगे।

महेंद्रकुमार-"क्लार्क महोदय भी क्या याद करेंगें किसी से पाला पड़ा था।"

गंगुली-“अब इससे कौन इनकार कर सकता है कि ये लोग कितने न्याय-प्रिय होते हैं।

जॉन सेवक-"अब जरा उस अंधो की भी खबर लेनी चाहिए।"

नायकराम-"साहब, उसको हार-जीत का कोई गम नहीं है। उस जमीन की दसगुनी भी मिल जाय, तो भी वह इसी तरह रहेगा।"

जॉन सेवक- "मैं कल ही से मिल में काम लगा दूँगा। जरा मिस्टर क्लार्क को भी देख लूँ।”

महेंद्रकुमार-“मैं तो अभिवादन-पत्र न दूँगा। उनकी तरफ से कोशिश तो होगी; पर बोर्ड का बहुमत मेरे साथ है।"

गंगुली-“ऐसा हाकिम लोंग को अभिवादन-पत्र देने का काम नहीं।"