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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/२८१

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रंगभूमि


महेंद्रकुमार के पेट में चूहे दौड़ रहे थे कि इंदु से भी इस सुख-संवाद पर बातें करूँ। यों तो वह बहुत ही गंभीर पुरुष थे; पर इस विजय ने बालोचित उल्लास से विह्वल कर दिया था। एक नशा-सा छाया हुआ था। रानी के जाने के जरा देर बाद वह विहसित-मुख, प्रसन्न-चित्त, अज्ञात भाव से अकड़ते, गर्व से मस्तक उठाये अंदर दाखिल हुए। इंदु रानी के पास बैठी हुई थी। खड़ी होकर बोली-"आखिर साहब बहादुर को बोरिया-बँधना संभालना पड़ा न!"

महेंद्रकुमारसिंह रानी के सामने अपना कुत्सित आनंद न प्रकट कर सके। बोले-"हाँ, अब तो टलना ही पड़ेगा।"

इंदु-"अब कल मैं इन लेडी साहब का कुशल-समाचार पूछँगी, जो धरती पर पाँव न रखती थीं, अपने आगे किसी को कुछ समझती ही न थीं। बुलाकर दावत करूँ!"

महेंद्रकुमार-"कभी न आयेगी, और जरूरत ही क्या है!"

इंदु-"जरूरत क्यों नहीं। झेपेगी तो, सिर तो नीचा हो जायगा। न आयेगी, न सही। अम्माँ, आपने तो देखा है, सोफिया पहले कितनी नम्र और मिलनसार थी; लेकिन क्लार्क से विवाह की बातचीत होते ही मिजाज आसमान पर चढ़ गया।"

रानी ने गंभीर भाव से कहा-"बेटी, यह तुम्हारा भ्रम है। सोफिया मिस्टर क्लार्क से कभी विवाह न करेगी। अगर मैं आदमियों को कुछ पहचान सकती हूँ, तो देख लेना, मेरी बात ठीक उतरती है या नहीं।"

इंदुः-"अम्माँ, क्लार्क से उसकी मँगनी हो गई है। संभव है, गुप्त रूप से विवाह भी हो गया हो। देखती नहीं हो; दोनों कितने घुले-मिले रहते हैं।"

रानी-"कितने ही घुले-मिले रहें; पर उनका विवाह न हुआ है, न होगा। मैं अपनी संकीर्णता के कारण सोफिया की कितनी ही उपेक्षा करूँ; किंतु वह सती है, इसमें अणु-मात्र भी संदेह नहीं। उसे लजित करके तुम पछताओगी।"

इंदु-"अगर वह इतनी उदार है, तो आपके बुलाने से अवश्य आयेगी।"

रानी-"हाँ, मुझे पूर्ण विश्वास है।"

इंदु-"तो बुला भेजिए, मुझे दावत का प्रबंध क्यों करना पड़े।"

रानी-"तुम यहाँ बुलाकर उसका अपमान करना चाहती हो। मैं तुमसे अपने

हृदय की बात कहती हूँ; अगर वह ईसाइन न होती, तो आज के पाँचवें वर्ष मैं उससे विनय का विवाह करती और इसे अपना धन्य भाग समझती।"

इंदु को ये बातें कुछ अच्छी न लगीं। उठकर अपने कमरे में चली गई। एक क्षण में महेंद्रकुमार भी यहाँ पहुँच गये और दोनों डींगें मारने लगे। कोई लड़का खेल में जीतकर भी इतना उन्मत्त न होता होगा।

उधर दीवानखाने से भी सभा उठ गई। लोग अपने-अपने घर गये। जब एकांत हो गया, तो कुँवर साहब ने नायकराम को बुलाकर कहा—"पण्डाजी, तुमसे मैं एक काम लेना चाहता हूँ, करोगे?"