ये सब जाह्नवी के बोये हुए काँटे हैं। उसके आगे मेरी कुछ नहीं चलती। मेरा सुख-स्वर्ग उसी के कारण नरक-तुल्य हो रहा है। उसी के कारण मेरा प्यारा विनय मेरे हाथों से निकला जाता है, ऐसा पुत्र रत्न खोकर यह संसार मेरे लिए नरक हो जायगा। तुम कल जाओगे? मुनीम से जितने रुपये चाहो, ले लो।"
नायकराम-"आपके अकबाल से किसी बात की कमी नहीं। आपकी दया चाहिए। आपने इतने प्रतापी होकर जो त्याग किया है, वह कोई दूसरा करता, तो आँख निकल पड़ती। त्याग करना कोई हँसी है! यहाँ तो घर में पूँजी भाँग नहीं, जात्रियों की सेवा टहल न करें, तो भोजन का ठिकाना भी न हो, पर बूटी की ऐसी चाट पड़ गई है कि एक दिन न मिले, तो बावला हो जाता हूँ। कोई आपकी तरह क्या खाके त्याग करेगा!"
कुँवर-“यह तो मानी हुई बात है कि तुम गये, तो विनय को लेकर ही लौटोगे। अब यह बताओ कि मैं तुम्हें क्या दक्षिणा दूँ? तुम्हारी सबसे बड़ी अभिलाषा क्या है?"
नायकराम-"सरकार की कृपा बनी रहे, मेरे लिए यह कुछ कम नहीं।”
कुँवर-"तो इसका आशय यह है कि तुम मेरा काम नहीं करना चाहते।”
नायकराम-"सरकार, ऐसी बात न कहें। आप मुझे पालते हैं, आपका हुकुम न बजा लाऊँगा, तो भगवान को क्या मुँह दिखाऊँगा। और फिर आपका काम कैसा, अपना ही काम है।"
कुँवर-"नहीं भई, मैं तुम्हें सेंत में इतना कष्ट नहीं देना चाहता। यह सबसे बड़ा सलूक है, जो तुम मेरे साथ कर रहे हो। मैं भी तुम्हारे साथ वही सलूक करना चाहता हूँ, जिसे तुम सबसे बड़ा समझते हो। तुम्हारे के लड़के हैं?"
नायकराम ने सिर झुकाकर कहा-"धर्मावतार, अभी तो ब्याह ही नहीं हुआ।"
कुँवर-"अरे, यह क्या बात है। आधी उम्न गुजर गई। और तुम अभी कुँआरे ही बेठे हो!"
नायकराम-"सरकार, तकदीर के सिवा और क्या कहूँ।"
इन शब्दों में इतनी मार्मतक वेदना भरी हुई थी कि कुँवर साहब पर नायकराम की चिरसंचित अभिलाषा प्रकट हो गई। बोले-"तो तुम घर में अकेले ही रहते हो?"
नायकराम—"हाँ धर्मावतार, भूत की भाँति अकेला ही पड़ा रहता हूँ। आपके अकबाल से दो खंड का मकान है, बाग-बगीचे हैं, गाय-भैंसें हैं; पर रहनेवाला कोई नहीं, भोगनेवाला कोई नहीं। हमारी बिरादरी में उन्हीं का ब्याह होता है, जो बड़े भाग्यवान होते हैं।"
कुँवर—(मुस्किराकर)"तो तुम्हारा विवाह कहीं ठहरा दूँ"
नायकराम—"महाराज, ऐसी तकदीर कहाँ?"
कुँवर—"तकदीर मैं बना दूँगा, मगर यह कैद तो नहीं है कि कन्या बहुत ऊँचे कुल की हो?"
नायकराम—"दीनबंधु, कन्याओं के लिए ऊँचा-नीचा कुल नहीं देखा जाता।