पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/२८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

[२६]

अरावली की हरी-भरी झूमती हुई पहाड़ियों के दामन में जसवंतनगर यों शयन कर रहा है, जैसे बालक माता की गोद में। माता के स्तन से दूध की धारें, प्रेमोद्गार से विकल, उबलती, मीठे स्वरों में गाती, निकलती हैं और बालक के नन्हें-से मुख में न समाकर नीचे बह जाती हैं। प्रभात की स्वर्ण-किरणों में नहाकर माता का स्नेह-सुंदर मुख निखर गया है और बालक भी अंचल से मुँह निकाल-निकालकर, माता के स्नेह-प्लावित मुख की ओर देखता है, हुमुकता है और मुस्किराता है; पर माता बार-बार उसे अंचल से ढक लेती है कि कहीं उसे नजर न लग जाय।

सहसा तोप के छूटने की फर्ण-कटु ध्वनि सुनाई दी। माता का हृदय काँप उठा, बालक गोद से चिमट गया।

फिर वही भयंकर ध्वनि! माँ दहल उठी, बालक चिमट गया।

फिर तो लगातार तो छूटने लगी। माता के मुख पर आशंका के बादल छा गये। आज रियासत के नये पोलिटिकल एजेंट यहाँ आ रहे हैं। उन्हीं के अभिवादन में सलामियाँ उतारी जा रही हैं।

मिस्टर क्लार्क और सोफिया को यहाँ आये एक महीना गुजर गया। जागीरदारों की मुलाकातों, दावतों, नजरानों से इतना अवकाश ही न मिला कि आपस में कुछ बातचीत हो। सोफिया बार-बार विनयसिंह का जिक्र करना चाहती; पर न तो उसे मौका ही मिलता और न यही सूझता कि कैसे वह जिक्र छेड़ूँ। आखिर जब पूरा महीना खत्म हो गया, तो एक दिन उसने क्लार्क से कहा- "इन दावतों का ताँता तो लगा ही रहेगा, और बरसात बीती जा रही है। अब यहाँ जी नहीं लगता, जरा पहाड़ी प्रांतों की सैर करनी चाहिए। पहाड़ियों में खूब बहार होगी।" क्लार्क भी सहमत हो गये। एक सप्ताह से दोनों रियासतों की सैर कर रहे हैं। रियासत के दीवान सरदार नीलकंठ राव भी साथ हैं। जहाँ ये लोग पहुँचते हैं, बड़ी धूमधाम से उनका स्वागत होता है, सलामियाँ उतारी जाती हैं, मान-पत्र मिलते हैं, मुख्य-मुख्य स्थानों की सैर कराई जाती है। पाठशालाओं, चिकित्सालयों और अन्य सार्वजनिक संस्थाओं का निरीक्षण किया जाता है। सोफिया को जेलखानों के निरीक्षण का बहुत शौक है। वह बड़े ध्यान से कैदियों को, उनके भोजनालयों को, जेल के नियमों को देखती है और कैदखानों के सुधार के लिए कर्मचारियों से विशेष आग्रह करती है। आज तक कभी इन अभागों की ओर किसी एजेंट ने ध्यान न दिया था। उनकी दशा शोचनीय थी, मनुष्यों से ऐसा व्यवहार किया जाता था, जिसकी कल्पना ही से रोमांच हो आता है। पर सोफिया के अविरत प्रयत्न से उनकी दशा सुधरने लगी है। आज जसवंतनगर के मेहमानों के सेवा-सत्कार का सौभाग्य प्राप्त हुआ है और सारा कस्बा, अर्थात् वहाँ के