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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/२८७

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रंगभूमि


राजकर्मचारी, पगड़ियाँ बाँधे इधर-उधर दौड़ते फिरते हैं। किसी के होश-हवास ठिकाने नहीं हैं, जैसे नींद में किसी ने भेड़िये का स्वप्न देखा हो। बाजार कर्मचारियों ने सुसजित कराये हैं, जेल के कैदियों और शहर के चौकीदारों ने कुलियों और मजदूरों का काम किया है, बस्ती का कोई प्राणी बिना अपना परिचय दिये हुए सड़कों पर नहीं आने पाता। नगर के किसी मनुष्य ने इस स्वागत में भाग नहीं लिया है और रियासत ने उनकी उदासीनता का यह उत्तर दिया है। सड़कों के दोनों तरफ सशस्त्र सिपाहियों की सफें खड़ी कर दी गई हैं कि प्रजा की अशांति का कोई चिह्न भी न नजर आने पाये। सभाएँ करने की मनाही कर दी गई है।

संध्या हो गई थी। जुलूस निकला। पैदल और सवार आगे-आगे थे। फौजी बाजे बज रहे थे। सड़कों पर रोशनी हो रही थी, पर मकानो में, छतों पर, अंधकार छाया हुआ था। फूलों की वर्षा हो रही थी, पर छतों से नहीं, सिपाहियों के हाथों से। सोफी सब कुछ समझती थी, पर क्लार्क की आँखों पर परदा-सा पड़ा हुआ था। असीम ऐश्वर्य ने उनकी बुद्धि को भ्रांत कर दिया है। कर्मचारी सब कुछ कर सकते हैं, पर भक्ति पर उनका वश नहीं होता। नगर में कहीं आनंदोत्साह का चिह्न नहीं है, सियापा-सा छाया हुआ है, न पग-पग पर जय-ध्वनि है, न कोई रमणी आरती उतारने आती है, न कहीं गाना-बजाना है। मानों किसी पुत्र-शोक-मग्न माता के सामने बिहार हो रहा हो।

कस्बे का गश्त करके सोफी, क्लार्क, सरदार नीलकंठ और दो-एक उच्च कर्मचारी तो राजभवन में आकर बैठे, और लोग बिदा हो गये। मेज पर चाय लाई गई। मि० क्लार्क ने बोतल से शराब उँडेली, तो सरदार साहब, जिन्हें इसकी दुर्गन्ध से घृणा थी, खिसककर सोफिया के पास आ बैठे और बोले-"जसवंतनगर आपको कैसा पसंद आया?"

सोफिया-"बहुत ही रमणीक स्थान है। पहाड़ियों का दृश्य अत्यन्त मनोहर है। शायद कश्मीर के सिवा ऐसी प्राकृतिक शोभा और कहीं न होगी। नगर की सफाई से चित्त प्रसन्न हो गया। मेरा तो जी चाहता है, यहाँ कुछ दिनों रहूँ।"

नीलकंठ डरे। एक-दो दिन तो पुलिस और सेना के बल से नगर को शांत रखा जा सकता है, पर महीने-दो महीने किसी तरह नहीं। असंभव है। कहीं ये लोग यहाँ जम गये, तो नगर की यथार्थ स्थिति अवश्य ही प्रकट हो जायगी। न जाने उसका क्या परिणाम हो। बोले-“यहाँ की बाह्य छटा के धोखे में न आइए। जल-वायु बहुत खराब है। आगे आपको इससे कहीं सुंदर स्थान मिलेंगे।"

सोफिया—"कुछ भी हो, मैं यहाँ दो हफ्ते अवश्य ठहरूँगी। क्या विलियम, तुम्हें यहाँ से जाने की कोई जल्दी तो नहीं है?"

क्लार्क—"तुम यहाँ रहो, तो मैं दफन होने को तैयार हूँ।"

सोफिया—"लीजिए सरदार साहब, विलियम को कोई आपत्ति नहीं है।"

सोफिया को सरदार साहब को दिक करने में मजा आ रहा था।