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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/२९०

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रंगभूमि


गये, सैकड़ों जेल में ठूँस दिये गये, क्या इस कस्बे को बिलकुल मिट्टी में मिला देना चाहते हैं?"

सहसा जेल का दारोगा आकर कर्कश स्वर में बोला-"तुमने कमरे की सफाई नहीं की! अरे, तुमने तो अभी तक कुरता भी नहीं बदला, कंबल तक नहीं बिछाया! तुम्हें हुक्म मिला या नहीं?"

विनय-"हुक्म तो मिला, मैंने उसका पालन करना आवश्यक नहीं समझा।"

दारोगा ने और गरम होकर कहा-“इसका यही नतीजा होगा कि तुम्हारे साथ भी और कैदियों का-सा सलूक किया जाय। हम तुम्हारे साथ अब तक शराफत का बर्ताव करते आये हैं, इसलिए कि तुम एक प्रतिष्ठित रईस के लड़के हो और यहाँ विदेश में आ पड़े हो। पर मैं शरारत नहीं बर्दाश्त कर सकता।"

विनय-“यह बतलाइए कि मुझे पोलिटिकल एजेंट के सामने तो न जाना पड़ेगा?"

दारोगा-"और यह कंबल और कुरता किसलिए दिया गया है! कभी और भी "किसी ने यहाँ नया कंबल पाया है? तुम लोगों के तो भाग्य खुल गये।"

विनय-"अगर आप मुझ पर इतनी रिआयत करें कि मुझे साहब के सामने जाने पर मजबूर न करें, तो मैं आपका हुक्म मानने को तैयार हूँ।"

दारोगा-"कैसी वे सिर-पैर की बातें करते हो जी, मेरा कोई अख्तियार है? तुम्हें जाना पड़ेगा।"

विनय ने बड़ी नम्रता से कहा-“मैं आपका यह एहसान कभी न भूलूँगा।" किसी दूसरे अवसर पर दारोगाजी शायद जामे से बाहर हो जाते, पर आज कैदियों को खुश रखना जरूरी था। बोले-"मगर भाई, यह रिआयत करनी मेरी शक्ति से बाहर है। मुझ पर न जाने क्या आफत आ जाय। सरदार साहब मुझे कच्चा ही खा जायँगे। मेम साहब को जेलों को देखने की धुन है। बड़े साहब तो कर्मचारियों के दुश्मन हैं, मेम साहब उनसे भी बढ़-चढ़कर हैं। सच पूछो, तो जो कुछ हैं, वह मेम साहब ही हैं। साहब तो उनके इशारों के गुलाम हैं। कहीं वह बिगड़ गई, तो तुम्हारी मियाद तो दूनी हो ही जायगी, हम भी पिस जायेंगे।"

विनय-"मालूम होता है, मेम साहब का बड़ा दबाव है।"

दारोगा-"दबाव! अजी, यह कहो कि मेम साहब ही पोलिटिकल एजेंट हैं। साहब तो केवल हस्ताक्षर करने-भर को हैं। नजर-भेंट सब मेम साहब के ही हाथों में जाती है।"

विनय—"आप मेरे साथ इतनी रिआयत कीजिए कि मुझे उनके सामने जाने के लिए मजबूर न कीजिए। इतने कैदियों में एक आदमी की कमी जान ही न पड़ेगी। हाँ, अगर वह मुझे नाम लेकर बुलायेंगी, तो मैं चला आऊँगा।"

दारोगा—"सरदार साहब मुझे जीता निगल जायँगे।"

विनय—"मगर करना आपको यही पड़ेगा। मैं अपनी खुशी से कदापि न जाऊँगा।"