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रंगभूमि


ज्यों ही अपनी शक्ति का कुछ ज्ञान हो जाता है, वह उसका दुरुपयोग करने लगती है। जो प्राणी शक्ति का संचार होते ही उन्मत्त हो जाय, उसका अशक्त, दलित रहना ही अच्छा है। गत विद्रोह इसका ज्वलंत प्रमाण है। ऐसी दशा में मैंने जो कुछ किया और कर रहा हूँ, वह सर्वथा न्यायसंगत और स्वाभाविक है।"

इंद्रदत्त-"क्या आपके विचार में प्रजा को चाहिए कि उस पर कितने ही अत्याचार किये जायें, वह मुँह न खोले?"

विनय-"हाँ, वर्तमान दशा में यही उसका धर्म है।"

इंद्रदत्त-"उसके नेताओं को भी यही आदर्श उसके सामने रखना चाहिए?"

विनय-"अवश्य!"

इंद्रदत्त-"तो जब आपने जनता को विद्रोह के लिए तैयार देखा, तो उसके सम्मुख खड़े होकर धैर्य और शांति का उपदेश क्यों नहीं दिया?"

विनय-"व्यर्थ था, उस वक्त कोई मेरी न सुनता।"

इंद्रदत्त-“अगर न सुनता, तो क्या आपका यह धर्म नहीं था कि दोनों दलों के बीच में खड़े होकर पहले खुद गोली का निशाना बनते?"

विनय-"मैं अपने जीवन को इतना तुच्छ नहीं समझता।"

इंद्रदत्त-"जो जीवन सेवा और परोपकार के लिए समर्पण हो चुका हो, उसके लिए इससे उत्तम और कौन मृत्यु हो सकती थी?"

विनय-"आग में कूदने का नाम सेवा नहीं है। उसे दमन करना ही सेवा है।"

इंद्रदत्त-"अगर वह सेवा नहीं है, तो दीन जनता की, अपनी कामुकता पर, आहुति देना भी सेवा नहीं है। बहुत संभव था कि सोफिया ने अपनी दलीलों से वीरपालसिंह को निरुत्तर कर दिया होता। किंतु आपने विषय के वशीभूत होकर पिस्तौल का पहला वार किया, और इसलिए इस हत्याकांड का सारा भार आपकी ही गरदन पर है और जल्द या देर में आपको इसका प्रायश्चित्त करना पड़ेगा। आप जानते हैं, प्रजा को आपके नाम से कितनी घृणा है? अगर कोई आदमी आपको यहाँ देखकर पहचान जाय, तो उसका पहला काम यह होगा कि आपके ऊपर तीर चलाये। आपने यहाँ की जनता के साथ, अपने सहयोगियों के साथ, अपनी जाति के साथ और सबसे अधिक अपनी पूज्य माता के साथ जो कुटिल विश्वासघात किया है, उसका कलंक कभी आपके माथे से न मिटेगा। कदाचित् रानीजी आपको देखें, तो अपने हाथों से आपकी गरदन पर कटार चला दें। आपके जीवन से मुझे यह अनुभव हुआ कि मनुष्य का कितना नैतिक पतन हो सकता है।"

विनय ने कुछ नम्र होकर कहा-"इंद्रदत्त, अगर तुम समझते हो कि मैंने स्वार्थवश अधिकारियों की सहायता की, तो तुम मुझ पर घोर अन्याय कर रहे हो। प्रजा का साथ देने में जितनी आसानी से यश प्राप्त होता है, उससे कहीं अधिक आसानी से अधिकारियों का साथ देने में अपयश मिलता है। यह मैं जानता था। किंतु सेवक का धर्म