गये? तुम्हें उचित था कि प्राण देकर भी आत्मा की रक्षा करते। अब तुम्हें ज्ञात हुआ होगा कि स्वार्थ-कामना मनुष्य को कितना पतित कर देती है। मैं जानता हूँ, एक वर्ष पहले सारा संसार मिलकर भी तुम्हारा सिर न झुका सकता था, आज तुम्हारा यह नैतिक पतन हो रहा है! अब उठो, मुझे पाप में न डुबाओ।"
विनय को इतना क्रोध आया कि इसके पैरों को खींच लूँ और छाती पर चढ़ बैठू। दुष्ट इस दशा में भी डंक मारने से बाज नहीं आता। पर यह विचार करके कि अब तो जो कुछ होना था, हो चुका, ग्लानि-भाव से बोले—"इंद्रदत्त, तुम मुझे जितना पामर समझते हो, उतना नहीं हूँ; पर सोफी के लिए मैं सब कुछ कर सकता हूँ। मेरा आत्मसम्मान, मेरी बुद्धि, मेरा पौरुष, मेरा धर्म सब कुछ प्रेम के हवन कुंड में स्वाहा हो गया। अगर तुम्हें अब भी मुझ पर दया न आये, तो मेरी कमर से पिस्तौल निकालकर एक निशाने से काम तमाम कर दो।"
यह कहते कहते विनय की आँखों में आँसू भर आये। इंद्रदत्त ने उन्हें उठाकर कंठ से लगा लिया और करुण भाव से बोले-"विनय, क्षमा करो, यद्यपि तुमने जाति का अहित किया है, पर मैं जानता हूँ कि तुमने वही किया, जो कदाचित् उस स्थिति में मैं या कोई भी अन्य प्राणी करता। मुझे तुम्हारा तिरस्कार करने का अधिकार नहीं। तुमने अगर प्रेम के लिए आत्ममर्यादा को तिलांजलि दे दी, तो मैं भी मैत्री और सौजन्य के लिए अपने वचन से विमुख हो जाऊँगा। जो तुम चाहते हो, वह मैं बता दूँगा। पर इससे तुम्हें कोई लाभ न होगा; क्योंकि मिस सोफिया की दृष्टि में तुम गिर गये हो, उसे अब तुम्हारे नाम से घृणा होती है। उससे मिलकर तुम्हें दुःख होगा।”
नायकराम—“भैया, तुम अपनी-सी कर दो, मिस साहब को मनाना-जनाना इनका काम है। आसिक लोग बड़े चलते-पुरजे होते हैं, छटे हुए सोहदे, देखने ही को सीधे होते हैं। मासूक को चुटकी बजाते अपना कर लेते हैं। जरा आँखों में पानी भरकर देखा, और मासूक पानी हुआ।
इंद्रदत्त—“मिस सोफिया मुझे कभी क्षमा न करेंगी; लेकिन अब उनका-सा हृदय कहाँ से लाऊँ। हाँ, एक बात बतला दो। इसका उत्तर पाये बिना मैं कुछ न बता सकूँगा।"
विनय—"पूछो।"
इंद्रदत्त—"तुम्हें वहाँ अकेले जाना पड़ेगा। वचन दो कि खुफिया पुलिस का कोई आदमी तुम्हारे साथ न होगा।"
विनय—"इससे तुम निश्चित रहो।"
इंद्रदत्त—"अगर तुम पुलिस के साथ गये, तो सोफिया की लाश के सिवा और कुछ न पाओगे।"
विनय—"मैं ऐसी मूर्खता करूँगा ही क्यों!"
इंद्रदत्त—“यह समझ लो कि मैं सोफी का पता बताकर उन लोगों के प्राण तुम्हारे हाथों में रखे देता हूँ, जिनकी खोज में तुमने दाना-पानी हराम कर रखा है।"