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रंगभूमि


उसने रुक्का लेकर फाड़ डाला। तब आज का समाचार-पत्र खोलकर देखने लगी। पहला ही शीर्षक था—'शास्त्रीजी की महत्त्व-पूर्ण वक्तृता।' इंदु ने पत्रको नीचे डाल दिया— "यह महाशय तो शैतान से ज्यादा प्रसिद्ध हो गये। जहाँ देखो, वहीं शास्त्री। ऐसे मनुष्य की योग्यता की चाहे जितनी प्रशंसा की जाय, पर उसका सम्मान नहीं किया जा सकता। शास्त्रीजी का नाम आते ही मुझे इनकी याद आ जाती है। जो आदमी जरा-जरा से मतभेद पर सिर हो जाय, दाल में जरा-सा नमक ज्यादा हो जाने पर स्त्री को घर से निकाल दे, जिसे दूसरों के मनोभावों का जरा भी लिहाज न हो, जिसे जरा भी चिंता न हो कि मेरो बातों से किसी के दिल पर क्या असर होगा, वह भी कोई आदमी है! हो सकता है कि कल को कहने लगें, अपने पिता से मिलने मत जाओ। मानों, मैं इनके हाथों बिक गई!"

दूसरे दिन प्रातःकाल उसने गाड़ी तैयार कराई और दुशाला ओढ़कर घर से 'निकली। महेंद्रकुमार बाग में टहल रहे थे। यह उनका नित्य का नियम था। इंदु को जाते देखा, तो पूछा—"इतने सबेरे कहाँ?”

इंदु ने दूसरी ओर ताकते हुए कहा-"जाती हूँ आपकी आज्ञा का पालन करने। इंद्रदत्त से रुपये वापस लूंँगी।"

महेंद्र—“इंदु, सच कहता हूँ, तुम मुझे पागल बना दोगी।”

इंदु—"आप मुझे कठपुतलियों की तरह नचाना चाहते हैं। कभी इधर, कभी उधर!"

सहसा इंद्रदत्त सामने से आते हुए दिखाई दिये। इंदु उनकी ओर लपककर चली, मानों अभिवादन करने जा रही है, और फाटक पर पहुँचकर बोली—“इंद्रदत्त, सच कहना, तुमने किसी से मेरे चंदे की चर्चा तो नहीं की?"

इंद्रदत्त सिटपिटा-सा गया, जैसे कोई आदमी दूकानदार को पैसे की जगह रुपया दे आये। बोला-"आपने मुझे मना तो नहीं किया था।"

इंदु—"तुम झूठे हो, मैंने मना किया था।"

इंद्रदत्त—"इंदुरानी, मुझे खूब याद है कि आपने मना नहीं किया था। हाँ, मुझे स्वयं बुद्धि से काम लेना चाहिए था। इतनी भूल जरूर मेरी है।"

इंदु—(धीरे से) "तुम महेंद्र से इतना कह सकते हो कि मैंने इनकी चर्चा किसो से नहीं की, मुझ पर तुम्हारी बड़ी कृपा होगी। बड़े नैतिक संकट में पड़ी हुई हूँ।"

यह कहते-कहते इंदु की आँखें डबडबा आई। इंद्रदत्त वातावरण ताड़ गया। बोला—"हाँ, कह दूंगा-आपकी खातिर से।"

एक क्षण में इद्रदत्त राजा के पास जा पहुँचा। इंदु घर में चली गई।

महेंद्रकुमार ने पूछा—“कहिए महाशय, इस वक्त कैसे कष्ट किया?"

इंद्रदत्त—"मुझे तो कष्ट नहीं हुआ, आपको कष्ट देने आया हूँ। क्षमा कीजिएगा।

यद्यपि यह नियम विरुद्ध है, पर मेरी आपसे प्रार्थना है कि सूरदास और सुभागी का