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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/४०२

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रंगभूमि

कुँवर-"तुम्हारे विचार में कंपनी को नफा होगा?"

प्रभु सेवक-"मैं समझता हूँ, पहले ही साल २५) सैकड़े नफा होगा।"

कुँवर-"तो क्या तुमने कारखाने से अलग होने का निश्चय कर लिया?"

प्रभु सेवक-"पक्का निश्चय कर लिया।”

कुँवर -"तुम्हारे पापा काम सँभाल सकेंगे?"

प्रभु सेवक-“पापा ऐसे आधे दर्जन कारखानों को सँभाल सकते हैं। उनमें अद्-भुत अध्यवसाय है। जमीन का प्रस्ताव बहुत जल्द कार्यकारिणी समिति के सामने आयेगा। मेरी आपसे यह विनीत प्रार्थना है कि आप उसे स्वीकृत न होने दें।"

कुँवर-(मुस्किराकर) "बुड्ढा आदमी इतनी आसानी से नई शिक्षा नहीं ग्रहण कर सकता। बूढ़ा तोता पढ़ना नहीं सीखता। मुझे तो इसमें कोई आपत्ति नहीं नजर आती कि बस्तीवालों को मुआवजा देकर जमीन ले ली जाय। हाँ, मुआवजा उचित होना चाहिए। जब तुम कारखाने से अलग ही हो रहे हो, तो तुम्हें इन झगड़ों से क्या मतलब? ये तो दुनिया के धंधे हैं, होते आये हैं और होते जायँगे।"

प्रभु सेवक-"तो आप इस प्रस्ताव का विरोध न करेंगे?"

कुँवर-"मैं किसी ऐसे प्रस्ताव का विरोध न करूँगा, जिससे कारखाने को हानि हो। कारखाने से मेरा स्वार्थ-संबंध है, मैं उसकी उन्नति में बाधक नहीं हो सकता। हाँ, तुम्हारा वहाँ से निकल आना मेरी समिति के लिए शुभ लक्षण है। तुम्हें मालूम है, समिति के अध्यक्ष डॉक्टर गंगुली हैं; पर कुछ वृद्धावस्था और कुछ काउंसिल के कामों में व्यस्त रहने के कारण वह इस भार से मुक्त होना चाहते हैं। मेरो हार्दिक इच्छा है कि तुम इस भार को ग्रहण करो। समिति इस समय मँझधार में है, विनय के आचरण ने उसे 'एक भयंकर दशा में डाल दिया है। तुम्हें ईश्वर ने विद्या, बुद्धि, उत्साह, सब कुछ दिया है। तुम चाहो, तो समिति को उबार सकते हो, और मुझे विश्वास है, तुम मुझे निराश न करोगे।"

प्रभु सेवक की आँखें सजल हो गई। वह अपने को इस सम्मान के योग्य न समझते थे। बोले-“मैं इतना बड़ा उत्तरदायित्व स्वीकार करने के योग्य नहीं हूँ। मुझे भय है "कि मुझ-जैसा अनुभव-हीन, आलसी प्रकृति का मनुष्य समिति की उन्नति नहीं कर सकता। यह आपकी कृपा है कि मुझे इस योग्य समझते हैं। मेरे लिए सफ हो काफी है।"

कुँवर साहब ने उत्साह बढ़ाते हुए कहा-"तुम-जैसे आदमियों को सफ में रखू,-तो नायकों को कहाँ से लाऊँ? मुझे विश्वास है कि कुछ दिनों डॉ० गंगुली के साथ रह-कर तुम इस काम में निपुण हो जाओगे। सजन लोग सदैव आनो क्षमता की उपेक्षा करते हैं, पर मैं तुम्हें पहचानता हूँ। तुम में अद्भुत विद्यु त-शक्ति है; उससे कहीं अधिक,जितनी तुम समझते हो। अरबी घोड़ा हल में नहीं चल सकता, उसके लिए मैदान चाहिए। तुम्हारी स्वतन्त्र आत्मा कारखाने में संकुचित हो रही थी, संसार के वीस्तीर्ण क्षेत्र में निकलकर उसके पर लग जायेंगे । मैंने विनय को इस पद के लिए चुन रखा था,