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रंगभूमि


आने से इस विषय पर कुछ प्रकाश पड़ेगा। यह देखिए, सोफिया का पत्र है। आज ही आया है। इसे आपको दिखा तो नहीं सकता, पर इतना कह सकता हूँ कि वह इस वक्त मेरे सामने आ जाय, तो उस पर पिस्तौल चलाने में एक क्षण भी विलंब न करूँगा। अब मुझे मालूम हुआ कि धर्मपरायणता छल और कुटिलता का दूसरा नाम है। इसकी धर्म-निष्टा ने मुझे बड़ा धोखा दिया। शायद कभी किसी ने इतना बड़ा धोखा न खाया होगा। मैंने समझा था, धार्मिकता से सहृदयता उत्पन्न होती है; पर यह मेरी भ्रांति थी, मैं इसकी धर्म-निष्ठा पर रीझ गया। मुझे इंगलैंड की रँगीली युवतियों से निराशा हो गई थी। सोफिया का सरल स्वभाव और धार्मिक प्रवृत्ति देखकर मैंने समझा, मुझे इच्छित वस्तु मिल गई। अपने समाज की उपेक्षा करके मैं उसके पास आने-जाने लगा और अंत में प्रोपोज किया। सोफिया ने स्वीकार तो कर लिया, पर कुछ दिनों तक लाह को स्थगित रखना चाहा। मैं क्या जानता था कि उसके दिल में क्या है? राजी हो गया। उसी अवस्था में वह मेरे साथ यहाँ आई, बल्कि यों कहिए कि वही मुझे यहाँ लाई। दुनिया समझती है, वह मेरी विवाहिता थी, कदापि नहीं। हमारी तो मँगनी भी न हुई थी। अब जाकर रहस्य खुला कि वह बोलशेविकों की एजेंट है। उसके एक एक शब्द से उसकी बोलशेविक प्रवृत्ति टपक रही है। प्रेम का स्वाँग भरकर वह अँगरेजों के आंतरिक भावों का ज्ञान प्राप्त करना चाहती थी। उसका यह उद्देश्य पूरा हो गया। मुझसे जो काम निकल सकता था, वह निकालकर उसने मुझे दुत्कार दिया है। विनयसिंह, तुम नहीं अनुमान कर सकते कि मैं उससे कितना प्रेम करता था। इस अनुपम रूप-राशि के नीचे इतनी घोर कुटिलता! मुझे धमकी दी है कि इतने दिनों में अँगरेजी समाज का मुझे जो कुछ अनुभव हुआ है, उसे मैं भारतवासियों के विनोदार्थ प्रकाशित कर दूंँगी। वह जो कुछ कहना चाहती है, मैं स्वयं क्यों न बतला दूँ। अँगरेज-जाति भारत को अनंत काल तक अपने साम्राज्य का अंग बनाये रखना चाहती है। कंजरवेटिव हो या लिबरल, रेडिकल हो या लेबर, नैशनलिस्ट हो या सोशलिस्ट, इस विषय में सभी एक ही आदर्श का पालन करते हैं। सोफी के पहले मैं स्पष्ट कह देना चाहता हूँ कि रेडिकल और लेबर नेताओं के धोखे में न आओ। कंजरवेटिव दल में और चाहे कितनी ही बुराइयाँ हों, वह निर्भीक है, तीक्ष्ण सत्य से नहीं डरता। रेडिकल और लेबर अपने पवित्र और उज्ज्वल सिद्धांतों का समर्थन करने के लिए ऐसी आशाप्रद बातें कह डालते हैं, जिनको व्यवहार में लाने का उन्हें साहस नहीं हो सकता। आधिपत्य त्याग करने की वस्तु नहीं है। संसार का इतिहास केवल इसी एक शब्द 'आधिपत्य-प्रेम' पर समाप्त हो जाता है। मानव-स्वभाव अब भी वही है, जो सृष्टि के आदि में था। अँगरेज-जाति कभी त्याग के लिए, उच्च सिद्धांतों पर प्राण देने के लिए प्रसिद्ध नहीं रही। हम सब-के-सब-मैं लेबर हूँ-साम्राज्यवादी हैं। अंतर केवल उस नीति में है, जो भिन्न भिन्न दल इस जाति पर आधिपत्य जमाये रखने के लिए ग्रहण करते हैं। कोई कठोर शासन का उपासक है, कोई सहानुभूति काम कोई चिकनी-चुपड़ी बातों से काम निकालने का। बस, वास्तव में नीति कोई है ही नहीं,