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रंगभूमि

विनय—"भ्रम में हम लोगों ने गरीबों पर कैसे-कैसे अत्याचार किये कि उनकी याद ही से रोमांच हो आता है। महाराज बहुत उचित कहते हैं, घोर अनर्थ हुआ। ज्यों हो यह बात लोगों को मालूम हो जायगी, जनता में हाहाकार मच जायगा। इसलिए अब यही उचित है कि हम अपनी भूल स्वीकार कर लें और कैदियों को मुक्त कर दें।"

महाराजा—"हरि हरि, यह कैसे होगा बेटा? राजों से भी कहीं भूल होती है। शिव-शिव! राजा तो ईश्वर का अवतार है। हरि-हरि! वह एक बार जो कर देता है, उसे फिर नहीं मिटा सकता। शिव-शिव! राजा का शब्द ब्रह्मलेख है, वह नहीं मिट सकता, हरि-हरि!”

विनय—"अपनी भूल स्वीकार करने में जो गौरव है, वह अन्याय को चिरायु रखने में नहीं। अधीश्वरों के लिए क्षमा ही शोभा देती है। कैदियों को मुक्त करने की आज्ञा दी जाय, जुरमाने के रुपये लौटा दिये जाय और जिन्हें शारीरिक दंड दिये गये हैं, उन्हें धन देकर संतुष्ट किया जाय। इससे आपकी कीर्ति अमर हो जायगी, लोग आपका यश गायेगे और मुक्त कंठ से आशीर्वाद देंगे।”

महाराजा—"शिव-शिव! बेटा, तुम राजनीति की चालें नहीं जानते। यहाँ एक कैदो भी छोड़ा गया और रियासत पर वज्र गिरा। सरकार कहेगी, मेम को न जाने किस नीयत से छिपाये हुए है, कदाचित् उस पर मोहित है, तभी तो पहले दंड का स्वाँग भर-कर अब विद्रोहियों को छोड़ देता है! शिव-शिव! रियासत धूल में मिल जायगी, रसातल को चली जायगी। कोई न पूछेगा कि यह बात सच है या झूठ। कहीं इस पर विचार न होगा। हरि-हरि! हमारी दशा साधारण अपराधियों से भी गई-बीती है। उन्हें तो सफाई देने का अवसर दिया जाता है, न्यायालय में उन पर कोई धारा लगाई जाती है और उसी धारा के अनुसार उन्हें दंड दिया जाता है। हमसे कौन सफाई लेता है, हमारे लिए कौन-सा न्यायालय है! हरि-हरि! हमारे लिए न कोई कानून है, न कोई धारा। जो अपराध चाहा, लगा दिया; जो दंड चाहा, दे दिया। न कहीं अपील है, न फरियाद। राजा विषय-प्रेमी कहलाते ही हैं, उन पर यह दोषारोपण होते कितनी देर लगती है! कहा जायगा, तुमने क्लार्क की अति रूपवती मेम को अपने रनिवास में छिपा लिया और झूठमूठ उड़ा दिया कि वह गुम हो गई। हरि-हरि! शिव-शिव! सुनत हूँ, बड़ी रूपवती स्त्री है, चाँद का टुकड़ा है, अप्सरा है। बेटा, इस अवस्था में यह कलंक न लगाओ वृद्धावस्था भी हमें ऐसे कुत्सित दोषों से नहीं बचा सकती। मशहूर है, राजा लोग रसादि का सेवन करते हैं, इसलिए जीवन-पर्यंत हृष्ट-पुष्ट बने रहते हैं। शिक्-शिव! यह राज्य नहीं है, अपने कर्मों का दंड है। नकटा जिया बुरे हवाल। शिव-शिव! अब कुछ नहीं हो सकता। सौ पचास निर्दोष मनुष्यों का जेल में पड़ा रहना कोई असाधारण बात नहीं। वहाँ भी तो भोजन-वस्त्र मिलता ही है। अब तो जेलखानों की दशा बहुत अच्छी है। नये-नये कुरते दिये जाते हैं, भोजन भी अच्छा दिया जाता है। हाँ, तुम्हारी