पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/४३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
४३५
रंगभूमि

चुनकू ने लजित होकर कहा-"चौधरी, भगवान जानें, जो मैं जरा भी इसारा पा जाता, तो रुपये का नाम ही न लेता।"

चौधरी-"अपना बयान बदल देना; कह देना, मुझे जबानी हिसाब याद नहीं था।" चुनकू ने इसका कुछ जवाब न दिया। बयान बदलना साँप के मुँह में उँगली डालना था। ताहिरअली को इन बातों से जरा भी तस्कीन नहीं हुई। वह पछता रहे थे। इसलिए नहीं कि मैंने रुपये क्यों खर्च किये, बल्कि इसलिए कि नामों के सामने x के निशान क्यों लगाये। अलग किसी कागज पर टाँक लेता, तो आज क्यों यह नौबत आती? अब खुदा ही खैर करे। साहब मुआफ करनेवाले आदमी नहीं हैं। कुछ सूझ ही न पड़ता था कि क्या करें। हाथ-पाँव फूल गये थे।

चौधरी बोला-"खाँ साहब, अब हाथ-पर-हाथ धरकर बैठने से काम न चलेगा। यह साहब बड़ा जल्लाद आदमी है। जल्दी रुपये जुटाइए। आपको याद है, कुल कितने रुपये निकलते होंगे?"

ताहिर-"रुपयों की कोई फिक्र नहीं है जी, यहाँ तो दाग लग जाने का अफसोस है। क्या जानता था कि आज यह आफत आनेवाली है, नहीं तो पहले से तैयार न हो जाता। जानते हो, यहाँ कारखाने का एक-न-एक आदमी कर्ज माँगने को सिर पर सवार रहता है। किस-किससे हीला करूँ? और फिर मुरौबत में हीला करने से भी तो काम नहीं चलता। रुपये निकालकर दे देता हूँ। यह उसी शराफत की सजा है। १५०) से कम न निकलेंगे, बल्कि चाहे २००) हो गये हों।"

चौधरी-"भला, सरकारी रकम इस तरह खरच की जाती है! आपने खरच को या किसी को उधार दे दी, बात एक ही है। वे लोग रुपये दे देंगे?"

ताहिर-"ऐसा खरा तो एक भी नहीं। कोई कहेगा, तनख्वाह मिलने पर दूंगा। कोई कुछ बहाना करेगा। समझ में नहीं आता, क्या करूँ?"

चौधरी-“घर में तो रुपये होंगे?"

ताहिर-"होने को क्या दो-चार सौ रूपये न होंगे; लेकिन जानते हो, औरतों का रुपया जान के पीछे रहता है। स्तुदा को जो मंजूर है, वह होगा।"

यह कहकर ताहिरअली अपने दो-चार दोस्तों की तरफ चले कि शायद यह हाल सुनकर लोग मेरी कुछ मदद करें, मगर कहीं न जाकर एक दरख्त के नीचे नमाज पढ़ने लगे। किसी से मदद की उम्मीद न थी।

इधर चौधरी ने चमारों से कहा-'भाइयो, हमरे मुंसीजी इस बखत तंग हैं। सत्र लोग थोड़ी-थोड़ी मदद करो, तो उनकी जान बच जाय। साहब अपने रुपये ही न लेंगे कि किसी की जान लेंगे। समझ लो, एक दिन नसा नहीं खाया।"

चौधरी तो चमारों से रुपये बटोरने लगा। ताहिर अली के दोस्तों ने यह हाल सुना, तो चुपके से दबक गये कि कहीं ताहिरअली कुछ माँग न बैठे। हाँ, जब तीसरे पहर दारोगा ने आकर तहकीकात करनी शुरू की और ताहिरअली को हिरासत में ले लिया,