पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/४३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
४३६
रंगभूमि


तो लोग तमाशा देखने आ पहुँचे। घर में हाय-हाय मच गई। कुल्सूम ने जाकर जैनब से कहा-"लीजिए, अब तो आपका अरमान निकला!"

जैनब ने कहा-"तुम मुझसे क्या बिगड़ती हो बेगम! अरमान निकले होंगे, तो तुम्हारे, न निकले होंगे, तो तुम्हारे। मैंने थोड़े ही कहा था कि जाकर किसी के घर में डाका मारो। गुलछरें तुमने उड़ाये होंगे, यहाँ तो रोटी-दाल के सिवा और किसी का कुछ नहीं जानते।"

कुल्सूम के पास तो कफन को कौड़ी भी न थी, जैनब के पास रुपये थे, पर उसने दिल जलाना ही काफी समझा। कुल्सूम को इस समय ताहिरअली से सहानुभूति न थी। उसे उन पर क्रोध आ रहा था, जैसे किसी को अपने बच्चे को चाकू से उँगली काटते देखकर गुस्सा आये।

संध्या हो रही थी। ताहिरअली के लिए दारोगा ने एक इक्का मँगवाया। उस पर चार कांस्टेबिल उन्हें लेकर बैठे। दारोगा जानता था कि यह माहिरअली के भाई हैं, कुछ लिहाज करता था। चलते वक्त बोला, अगर आपको घर में किसी से कुछ कहना हो, तो आप जा सकते हैं; औरतें घबरा रही होंगी, उन्हें जरा तस्कीन देते आइए। पर ताहिरअली ने कहा, मुझे किसी से कुछ नहीं कहना है। वह कुल्सूम को अपनी सूरत न दिखाना चाहते थे, जिसे उन्होंने जान-बूझकर गारत किया था और निराधार छोड़े जाते थे। कुल्सूम द्वारी पर खड़ी थी। उसका क्रोध प्रतिक्षण शोक की सूरत पकड़ता जाता था, यहाँ तक कि जब इक्का चला, तो वह पछाड़ खाकर गिर पड़ी। बच्चे 'अब्बा, अब्बा' करते इक्के के पीछे दौड़े। दारोगा ने उन्हें एक-एक चवन्नी मिठाई खाने को देकर फुसला दिया। ताहिर अली तो उधर हिरासत में गये, इधर घड़ी रात जाते-जाते चमारों का चौधरी रुपये लेकर मिस्टर सेवक के पास पहुँचा। साहब बोले-'ये रुपये तुम उनके घरवालों को दे दो, तो उनका गुजर हो जाय। मुआमला अब पुलिस के हाथ में है, मैं कुछ नहीं कर सकता।"

चौधरी—"हजूर, आदमी से खता हो ही जाती है, इतने दिनों तक आपकी चाकरी की, हजूर को उन पर कुछ दया करनी चाहिए। बड़ा भारी परिवार है सरकार, बाल-बच्चे भूखों मर जायेंगे।"

जॉन सेवक—"मैं यह सब जानता हूँ, बेशक उनका खर्च बहुत था। इसीलिए मैंने माल पर कटौती दे दी थी। मैं जानता हूँ कि उन्होंने जो कुछ किया है, मजबूर होकर किया है। लेकिन विष 'किसी नीयत से खाया जाय, विष ही का काम करेगा, कभी अमृत नहीं हो सकता। विश्वासघात विष से कम घातक नहीं होता। तुम ये रुपये ले जाकर उनके घरवालों को दे दो। मुझे खाँ साहब से कोई बिगाड़ नहीं है, लेकिन अपने धर्म को नहीं छोड़ सकता। पाप को क्षमा करना पाप करना है।"

चौधरी यहाँ से निराश होकर चला गया। दूसरे दिन अभियोग चला। ताहिरअली दोषी पाये गये। वह अपनी सफाई न पेश कर सके। छ महीने की सजा हो गई।