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रंगभूमि
लोक के लिए। आज तुम्हारी गोद में वे लोग आ रहे हैं, जो निष्काम थे, जिन्होंने पवित्र विशुद्ध न्याय की रक्षा के लिए अपने को बलिदान कर दिया!
और, ऐसा मंगलमय शोक-समाज भी तुमने कभी देखा, जिसका एक-एक अंग भ्रातृप्रेम, स्वजाति-प्रेम और वीर भक्ति से परिपूर्ण हो?
रात-भर ज्वाला उठती रही, मानों वीरात्माएँ अग्नि-विमान पर बैठी हुई स्वर्गलोक को जा रही हैं।
ऊषा-काल की स्वर्णमयी किरणें चिताओं से प्रेमालिंगन करने लगी। यह सूर्यदेव का आशीर्वाद था।
लौटते समय तक केवल गिने-गिनाये लोग रह गये थे। महिलाएँ वीरगान करती हुई चली आती थीं। रानी जाह्नवी आगे-आगे थीं, सोफी इंदु और कई अन्य महिलाएँ पीछे। उनकी वीर-रस में डूबी हुई मधुर संगीत-ध्वनि प्रभात की आलोक-रश्यियों पर नृत्य कर रही थी, जैसे हृदय की तंत्रियों पर अनुराग नृत्य करता है।