पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
५१
रंगभूमि


इस विचार से उन्हें कुछ तसल्ली हुई। ईर्ष्या की व्यापकता ही साम्यवाद की सर्व-प्रियता का कारण है। रानी साहब को आश्चर्य हो रहा था कि इन्हें मेरी कोई चीज पसंद न आई, किसी वस्तु का बखान न किया। मैंने एक-एक चित्र और एक-एक प्याले के लिए हजारों खर्च किये हैं। ऐसी चीजें यहाँ और किस के पास हैं। अब अलभ्य हैं, लाखों में भी न मिलेंगी। कुछ नहीं, बन रही हैं, या इतना गुण ज्ञान ही नहीं है कि इनकी कद्र कर सकें।

इतने पर भी रानीजी को निराशा नहीं हुई। उन्हें अपना बाग दिखाने लगीं। भाँति-भाँति के फूल और पौदे दिखाये। माली बड़ा चतुर था। प्रत्येक पौदे का गुण और इतिहास बतलाता जाता था-कहाँ से आया, कब आया, किस तरह लगाया गया, कैसे उसकी रक्षा की जाती है; पर मिसेज सेवक का मुँह अब भी न खुला। यहाँ तक कि अंत में उसने एक ऐसी नन्ही-सी जड़ी दिखाई, जो येरुसलम से लाई गई थी। कुँवर साहब उसे स्वयं बड़ी सावधानी से लाये थे, ओर उसमें एक-एक पत्ती का निकलना उनके लिए एक-एक शुभ-संवाद से कम न था। मिसेज सेवक ने तुरंत उस गमले को उठा लिया, उसे आँखों से लगाया, और पत्तियों को चूमा। बोलीं-"मेरा सौभाग्य है कि इस दुर्लभ वस्तु के दर्शन हुए।"

रानी ने कहा-“कुँवर साहब स्वयं इसका बड़ा आदर करते हैं। अगर यह आज सूख जाय, तो दो दिन तक उन्हें भोजन अच्छा न लगेगा।"

इतने में चाय तैयार हुई। मिसेज सेवक लंच पर बैठो। रानीजी को चाय से रुचि न थी। विनय और इंदु के बारे में बातें करने लगी। विनय के आचार-विचार, सेवा-भक्ति और परोपकार-प्रेम की सराहना की, यहाँ तक कि मिसेज सेवक का जो उकता गया। इसके जवाब में वह अपनी संतानों का बखान न कर सकती थीं।

उधर मि० जॉन सेवक और कुँवर साहब दीवानखाने में बैठे लंच कर रहे थे। चाय और अंडों से कुँवर साहब की रुचि न थी। विनय भी इन दोनों वस्तुओं को त्याज्य समझते थे। जॉन सेवक उन मनुष्यों में थे, जिनका व्यक्तित्व शोघ्र ही दूसरों को आकर्षित कर लेता है। उनकी बातें इतनी विचार-पूर्ण होती थीं कि दूसरे अपनी बातें भूलकर उन्हीं की सुनने लगते थे। और, यह बात न थी कि उनका भाषण शब्दाडंबर-मात्र होता हो। अनुभवशील और मानव-चरित्र के बड़े अच्छे ज्ञाता थे। ईश्वरदत्त प्रतिभा थी, जिसके बिना किसी सभा में सम्मान नहीं प्राप्त हो सकता। इस समय वह भारत की औद्योगिक और व्यावसायिक दुर्बलता पर अपने विचार प्रकट कर रहे थे। अवसर पाकर उन साधनों का भी उल्लेख करते जाते थे, जो इस कुदशा-निवारण के लिए उन्होंने सोच रखे थे। अंत में बोले- "हमारी जाति का उद्धार कला-कौशल और उद्योग की उन्नति में है। इस सिगरेट के कारखाने से कम-से-कम एक हजार आदमियों के जीवन की समस्या हल हो जायगी, और खेती के सिर से उनका बोझ टल जायगा। जितनी जमीन एक आदमी अच्छी तरह जोत-बो सकता है, उसमें घर-भर