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रंगभूमि


राजा-"मुझे तो विश्वास नहीं होता कि फिर कभी मेरा सम्मान होगा मिस सेवक, आप मेरी दुर्बलता पर हँस रही होंगी, पर मैं बहुत दुखी हूँ।"

सोफिया ने अविश्वास-भाव से कहा-"जनता अत्यंत क्षमाशील होती है। अगर अब भी आप जनता को यह दिखा सकें कि इस दुर्घटना पर आपको दुःख है, तो कदा-चित् प्रजा आपका फिर सम्मान करे।"

राजा ने अभी उत्तर न दिया था कि सूरदास बोल उठा-"सरकार, नेकनामी और बदनामी बहुत-से आदमियों के हल्ला मचाने से नहीं होती। सच्ची नेकनामी अपने मन में होती है। अगर अपना मन बोले कि मैंने जो कुछ किया, वही मुझे करना चाहिए था, इसके सिवा कोई दूसरी बात करना मेरे लिए उचित न था, तो वही नेकनामी है। अगर आपको इस मार-काट पर दुख है, तो आपका धरम है कि लाट साहब से इसकी लिखा-पढ़ी करें। वह न सुनें, तो जो उनसे बड़ा हाकिम हो, उससे कहें-सुनें, और जब तक सरकार परजा के साथ न्याय न करे, दम न लें। लेकिन अगर आप समझते हैं कि जो कुछ आपने किया, वही आपका धरम था, स्वार्थ के लोभ से आपने कोई बात नहीं की, तो आपको तनिक भी दुख न करना चाहिए।"

सोफी ने पृथ्वी की ओर ताकते हुए कहा-"राजपक्ष लेनेवालों के लिए यह सिद्ध करना कठिन है कि वे स्वार्थ से मुक्त हैं।"

राजा-"मिस सेवक, मैं आपको सच्चे हृदय से विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने अधिकारियों के हाथों सम्मान और प्रतिष्ठा पाने के लिए उनका पक्ष नहीं ग्रहण किया, और पद का लोभ तो मुझे कभी.रहा ही नहीं। मैं स्वयं नहीं कह सकता कि वह कौन- सी बात थी, जिसने मुझे सरकार की ओर खींचा। संभव है, अनिष्ट का भय हो, या केवल ठकुरसुहाती; पर मेरा कोई स्वार्थ नहीं था। संभव है, मैं उस समाज की आलोचना, उसके कुटिल कटाक्ष और उसके व्यंग्य से डरा होऊँ। मैं स्वयं इसका निश्चय नहीं कर सकता। मेरी धारणा थी कि सरकार का कृपा-पात्र बनकर प्रजा का जितना हित कर सकता हूँ, उतना उसका द्वेषी बनकर नहीं कर सकता। पर आज मुझे मालूम हुआ कि वहाँ भलाई होने की जितनी आशा है, उससे कहीं अधिक बुराई होने का भय है। यश और कीर्ति का मार्ग वही है, जो सूरदास ने ग्रहण किया। सूरदास, आशीर्वाद दो कि ईश्वर मुझे सत्पथ पर चलने की शक्ति प्रदान करें।"

आकाश पर बादल मँडला रहे थे। सूरदास निद्रा में मग्न था। इतनी बातों से उसे थकावट आ गई थी। सुभागी एक टाट का टुकड़ा लिये हुए आई और सूरदास के पैताने बिछाकर लेट रही। शफाखाने के कर्मचारी चले गये। चारों ओर सन्नटा छा गया।

सोफी गाड़ी का इंतजार कर रही थी-“दस बजते होंगे। रानीजी शायद गाड़ी भेजना भूल गई। उन्होंने शाम ही को गाड़ी भेजने का वादा किया था। कैसे जाऊँ? क्या हरज है, यहीं बैठी रहूँ। वहाँ रोने के सिवा और क्या करूँगी। आह! मैंने विनय