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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/५३८

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रंगभूमि


और वह हँस-हँसकर बातें कर रही थीं। बड़ा विशाल हृदय है। पहले का-सा गरूर नाम को न था। सोफी, विनयसिंह की अकाल मृत्यु पर किसे दुःख न होगा; पर उनके आत्म-समर्पण ने सैकड़ों जानें बचा लीं, नहीं तो जनता आग में कूदने को तैयार थी। घोर अनर्थ हो जाता। मि० क्लार्क ने सूरदास पर गोली तो चला दी थी, पर जनता का रुख देखकर सहमे जाते थे कि न जाने क्या हो। वीरात्मा पुरुष था, बड़ा ही दिलेर!"

इस प्रकार सोफिया को परितोप देने के बाद मि० सेवक ने उससे घर चलने के लिए आग्रह किया। सोफिया ने टालकर कहा-“पापा, इस समय मुझे क्षमा कीजिए, सूरदास की हालत बहुत नाजुक है। मेरे रहने से डॉक्टर और अन्य कर्मचारी विशेष ध्यान देते हैं। मैं न हूँगी, तो कोई उसे पूछेगा भी नहीं। आइए, जरा देखिए। आपको आश्चर्य होगा कि इस हालत में भी वह कितना चैतन्य है और कितनी अकलमंदी की बातें करता है! मुझे तो वह मानव-देह में कोई फरिश्ता मालूम होता है।"

सेवक-"मेरे जाने से उसे रंज तो न होगा?"

सोफिया-"कदापि नहीं पापा, इसका विचार ही मन में न लाइए। उसके हृदय में द्वेष और मालिन्य की गंध तक नहीं है।”

दोनों प्राणी सूरसाद के पास गये, तो वह मनस्ताप से विकल हो रहा था। मि० सेवक, बोले- "सूरदास, कैसी तबियत है?"

सूरदास-"साहब, सलाम। बहुत अच्छा हूँ। मेरे धन्य भाग। मैं मरते-मरते बड़ा आदमी हो जाऊँगा।"

सेवक-"नहीं-नहीं सूरदास, ऐसी बातें न करो, तुम बहुत जल्द अच्छे हो जाओगे।"

सूरदास-(हँसकर) “अब जीकर क्या करूँगा? इस समय मरूँगा, तो बैकुंठ पाऊँगा, फिर न जाने क्या हो। जैसे खेत कटने का एक समय है, उसी तरह मरने का भी एक समय होता है। पक जाने पर खेत न कटे, तो नाज सड़ जायगा, मेरो भी वही दशा होगी। मैं भी कई आदमियों को जानता हूँ, जो आज से दस बरस पहले मरते, तो लोग उनका जस गाते, आज उनकी निंदा हो रही है।"

सेवक-"मेरे हाथों तुम्हारा बड़ा अहित हुआ। इसके लिए मुझे क्षमा करना।"

सूरदास-“मेरा तो आपने कोई अहित नहीं किया, मुझसे और आपसे दुसमनी ही कौन-सी थी। हम और आप आमने-सामने की पालियों में खेले। आपने भरसक जोर लगाया, मैंने भी भरसक जोर लगाया। जिसको जीतना था, जीता; जिसको हारना था, हारा। खिलाड़ियों में बैर नहीं होता। खेल में रोते तो लड़कों को भी लाज आती है। खेल में चोट लग जाय, चाहे जान निकल जाय; पर बैर-भाव न आना चाहिए। मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है।"

सेवक-"सूरदास, अगर इस तत्त्व को, जीवन के इस रहस्य को, मैं भी तुम्हारी भाँति समझ सकता, तो आज यह नौबत न आती। मुझे याद है, तुमने एक बार मेरे