पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/५३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
५४५
रंगभूमि


कारखाने को आग से बचाया था। मैं तुम्हारी जगह होता, तो शायद आग में और तेल डाल देता। तुम इस संग्राम में निपुण हो सूरदास, मैं तुम्हारे आगे निरा बालक हूँ। लोकमत के अनुसार मैं जीता और तुम हारे, पर मैं जीतकर भी दुखी हूँ, तुम हार-कर भी सुखी हो। तुम्हारे नाम की पूजा हो रही है, मेरी प्रतिमा बनाकर लोग जला रहे हैं। मैं धन, मान, प्रतिष्ठा रखते हुए भी तुमसे सम्मुख होकर न लड़ सका। सरकार की आड़ से लड़ा। मुझे जब अवसर मिला, मैंने तुम्हारे ऊपर कुटिल आघात किया। इसका मुझे खेद है।"

मरणासन्न मनुष्य का वे लोग भी स्वच्छन्द होकर कीर्ति-गान करते हैं, जिनका जीवन उससे वैर साधने में ही कटा हो; क्योंकि अब उससे किसी हानि की शंका नहीं होती।

सूरदास ने उदार भाव से कहा-"नहीं साहब, आपने मेरे साथ कोई अन्याय नहीं किया। धूर्तता तो निबलों का हथियार है। बलवान कभी नीच नहीं होता।"

सेवक-" हाँ सूरदास, होना वहीं चाहिए, जो तुम कहते हो; पर ऐसा होता नहीं। मैंने नीति का कभी पालन नहीं किया। मैं संसार को क्रीड़ा-क्षेत्र नहीं, संग्राम- क्षेत्र समझता रहा, और युद्ध में छल, कपट, गुप्त आघात सभी कुछ किया जाता है। धर्मयुद्ध के दिन अब नहीं रहे।"

सूरदास ने इसका कुछ उत्तर न दिया। वह सोच रहा था कि मिठुआ की बात साहब से कह दूं या नहीं। उसने कड़ी कसम रखाई है। पर कह देना ही उचित है। लौंडा हठी और कुचाली है, उस पर घीसू का साथ, कोई-न-कोई अनीति अवश्य करेगा। कसम रखा देने से तो मुझे हत्या लगती नहीं। कहीं कुछ नटखटी कर बैठा, तो साहब समझेंगे, अंधे ने मरने के बाद भी बैर निभाया। बोला-“साहब, आपसे एक बात कहना चाहता हूँ।"

सेवक-"कहो, शौक से कहो।"

सूरदास ने संक्षित रूप से मिठुआ की अनर्गल बातें मि० सेवक से कह सुनाई और अंत में बोला-"मेरी आपसे इतनी ही बिनती है कि उस पर कड़ी निगाह रखिएगा। अगर अवसर पा गया तो चूकनेवाला नहीं है। तब आपको भी उस पर क्रोध आ ही जायगा, और आप उसे दंड देने का उपाय सोचेंगे। मैं इन दोनों बातों में से एक भी नहीं चाहता।"

सेवक अन्य धनी पुरुषों की भाँति बदमाशों से बहुत डरते थे, सशंक होकर बोले-"सूरदास, तुमने मुझे होशियार कर दिया, इसके लिए तुम्हारा कृतज्ञ हूँ। मुझमें और तुममें यही अंतर है। मैं तुम्हें कभी यो संचेत न करता। किसी दूसरे के हाथों तुम्हारी गरदन कटते देख कर भी कदाचित् मेरे मन में दया न आती। कसाई भी सदय और निर्दय हो सकते हैं। हम लोग द्वष में निर्दय कसाइयों से भी बढ़ जाते हैं। (सोफिया से अँगरेजी में) बड़ा सत्यप्रिय आदमी है। कदाचित् संसार ऐसे आदमियों के रहने का