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रंगभूमि


में सरकार से सहायता लेना उचित नहीं समझता; पर ऐसी दशा में मुझे इसके सिवा दूसरा कोई उपाय भी नहीं सूझता। और, फिर यह बिलकुल निजी बात भी नहीं है। म्यूनिसिपैलिटी और सरकार, दोनों ही को इस कारखाने से हजारों रुपये साल की आमदनी होगी, हजारों शिक्षित और अशिक्षित मनुष्यों का उपकार होगा। इस पहलू से देखिए, तो यह सार्वजनिक काम है, और इसमें सरकार से सहायता लेने में मैं औचित्य का उल्लंघन नहीं करता। आप अगर जरा तवजह करें, तो बड़ी आसानी से काम निकल जाय।”

कुँवर साहब-"मेरा उस फकीर पर कुछ दबाव नहीं है, और होता भी, तो मैं उससे काम न लेता।"

जॉन सेवक-“आप राजा साहब चतारी......"

कुँवर साहब-"नहीं, मैं उनसे कुछ नहीं कह सकता। वह मेरे दामाद हैं, और इस विषय में मेरा उनसे कहना नीति-विरुद्ध है। क्या वह आपके हिस्सेदार नहीं हैं?"

जॉन सेवक-"जी नहीं, वह स्वयं अतुल संपत्ति के स्वामी होकर भी धनियों की उपेक्षा करते हैं। उनका विचार है कि कल-कारखाने पूँजीवालों का प्रभुत्व बढ़ाकर जनता का अपकार करते हैं। इन्हीं विचारों ने तो उन्हें यहाँ प्रधान बना दिया।”

कुँवर साहब-"यह तो अपना-अपना सिद्धांत है। हम द्वैध जीवन व्यतीत कर रहे हैं, और मेरा विचार है कि जनतावाद के प्रेमी उच्च श्रेणी में जितने मिलेंगे, उतने निम्न श्रेणी में न मिल सकेंगे। खैर, आप उनसे मिलकर देखिए तो। क्या कहूँ, शहर के आस-पास मेरी एक एकड़ जमीन भी नहीं है, नहीं तो आपको यह कठिनाई न होती। मेरे योग्य और जो काम हो, उसके लिए हाजिर हूँ।"

जॉन सेवक-"जी नहीं, मैं आपको और कष्ट नहीं देना चाहता, मैं स्वयं उनसे मिलकर तय कर लूँगा।”

कुँवर साहब-"अभी तो मिस सोफिया पूर्ण स्वस्थ होने तक यहीं रहेगी न? आपको तो इसमें कोई आपत्ति नहीं है?"

जॉन सेवक इस विषय में सिर्फ दो-चार बातें करके यहाँ से बिदा हुए। मिसेज सेवक फिटन पर पहले ही से आ बैठी थीं। प्रभु सेवक विनय के साथ बाग में टहल रहे थे। विनय ने आकर जॉन सेवक से हाथ मिलाया। प्रभु सेवक उनसे कल फिर मिलने का वादा करके पिता के साथ चले। रास्ते में बातें होने लगी।

जॉन सेवक-"आज एक मुलाकात में जितना काम हुआ, उतना महीनों की दौड़-धूप से भी न हुआ था। कुँवर साहब बड़े सजन आदमी हैं। ५० हजार के हिस्से, ले लिये। ऐसे ही दो-चार भले आदमी और मिल जायँ, तो बेड़ा पार है।”

प्रभु सेवक-"इस घर के सभी प्राणी दया और धर्म के पुतले हैं। मैंने विनयसिंह-जैसा काव्य-मर्मज्ञ नहीं देखा। मुझे तो इनसे प्रेम हो गया।"

जॉन सेवक-"कुछ काम की बातचीत भी की?”

प्रभु सेवक-"जी नहीं, आपके नजदीक जो काम की बातचीत है, उन्हें उसमें