पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/५६५

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इधर सूरदास के स्मारक के लिए चंदा जमा किया जा रहा था, उधर कुलियों के टोले के शिलान्यास की तैयारियाँ हो रही थीं। नगर के गण्यमान्य पुरुष निमंत्रित हुए थे। प्रांत के गवर्नर से शिला-स्थापना की प्रार्थना की गई थी। एक गार्डनपार्टी होनेवाली थी। गवर्नर महोदय को अभिनंदन-पत्र दिया जानेवाला था। मिसेज सेवक दिलोजान से तैयारियाँ कर रही थीं। बँगले की सफाई और सजावट हो रही थी। तोरण आदि बनाये जा रहे थे। अँगरेजी बैंड बुलाया गया था। मि० क्लार्क ने सरकारी कर्मचारियों को मिसेज सेवक की सहायता करने का हुक्म दे दिया था और स्वयं चारों तरफ दौड़ते फिरते थे।

मिसेज सेवक के हृदय में अब एक नई आशा अंकुरित हुई थी। कदाचित् विनय-सिंह की मृत्यु सोफिया को मि० क्लार्क की ओर आकर्षित कर दे, इसलिए वह मि० क्लार्क की और भी खातिर कर रही थीं। सोफिया को स्वयं जाकर साथ लाने का निश्चय कर चुकी थीं-जैसे बनेगा, वैसे लाऊँगी, खुशी से न आयेगी, जबरदस्ती लाऊँगी, रोऊँगी, पैरों पड़ूँगी, और बिना साथ लाये उसका गला न छोड़ूँगी।

मि० जॉन सेवक कंपनी का वार्षिक विवरण तैयार करने में दत्तचित्त थे। गत साल के नफे की सूचना देने के लिए उन्होंने यही अवसर पसंद किया था। यद्यपि यथार्थ लाभ बहुत कम हुआ था किंतु आय- व्यय में इच्छा-पूर्वक उलट-फेर करके वह आशातीत लाभ दिखाना चाहते थे, जिसमें कंपनी के हिस्सों की दर चढ़ जाय और लोग हिस्सों पर टूट पड़ें। इधर के घाटे को वह इस चाल से पूरा करना चाहते थे। लेखकों को रात-रात-भर काम करना पड़ता था और स्वयं मि० सेवक हिसाबों की तैयारी में उससे कहीं ज्यादा परिश्रम करते थे, जितना उत्सव की तैयारियों में।

किंतु मि० ईश्वर सेवक को ये तैयारियाँ, जिन्हें वह अपव्यय कहते थे, एक आँख न भाती थीं। वह बार-बार झुंझलाते थे, बेचारे वृद्ध आदमी को सुबह से शाम तक सिरमगजन करते गुजरता था। कभी बेटे पर झल्लाते, कभी बहू पर, कभी कर्मचारियों पर, कभी सेवकों पर-"यह पाँच मन बर्फ की क्या जरूरत है, क्या लोग इसमें नहायेंगे? मन-भर काफी थी। काम तो आधे मन ही में चल सकता था। इतनी शराब की क्या जरूरत? कोई परनाला बहाना है; या मेहमानों को पिलाकर उनके प्राण लेने हैं, इससे क्या फायदा कि लोग पी-पीकर बदमस्त हो जायँ और आपस में जूती-पैजार होने लगे? लगा दो घर में आग, या मुझी को जहर दे दो, न जिंदा रहूँगा, न जलन होगी। प्रभु मसीह! मुझे अपने दामन में ले। इस अनर्थ का कोई ठिकाना है, फौजी बैंड की क्या जरूरत? क्या गवर्नर कोई बच्चा है, जो बाजा सुनकर खुश होगा? या शहर के रईश बाजे के भूखे हैं? ये आतिशबाजियाँ क्या होंगी? गजब खुदा का,