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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/५६६

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रंगभूमि


क्या एक सिरे से सब भंग खा गये हैं? यह गर्वनर का स्वागत है,या बच्चों का खेल? पटाखे और छछूँदरें किसको खुश करेंगी? माना,पटाखे और छछूँदरें न होंगी,अँगरेजी आतिशबाजियाँ होंगी,मगर क्या गवर्नर ने आतिशबाजी नहीं देखी है? ऊट-पटाँग काम करने से क्या मतलब? किसी गरीब का घर जल जाय, कोई और दुर्घटना हो जाय,तो लेने के देने पड़ें। हिंदुस्थानी रईसों के लिए फल-मेवे और मुरब्बे-मिठाइयाँ मँगाने की जरूरत? वे ऐसे भुक्खड़ नहीं होते। उनके लिए एक-एक सिगरेट काफी थी। हाँ, पान-इलायची का प्रबंध और कर दिया जाता। वे यहाँ कोई दावत खाने तो आयेंगे नहीं, कंपनी का वार्षिक बिवरण सुनने आयेंगे। अरे, ओ खानसामा, सुअर, ऐसा न हो कि मैं तेरा सिर तोड़कर रख दूँ। जो-जो वह पगली (मिसेज सेवक) कहती है, वही करता है। मुझे भी कुछ बुद्धि है या नहीं? जानता है, आजकल ४) सेर अंगूर मिलते हैं। इनकी बिलकुल जरूरत नहीं। खबरदार, जो यहाँ अंगूर आये!" सारांश यह कि कई दिनों तक निरंतर बक-बक, झक-झक से उनका चित्त कुछ अन्य-वस्थित-सा हो रहा था। कोई उनकी सुनता न था,सब अपने-अपने मन की करते थे। जब वह बकते-बकते थक जाते,तो उठकर बाग में चले जाते। लेकिन थोड़ी ही देर में फिर घबराकर आ पहुँचते और पूर्ववत् लोगों पर वाक्यप्रहार करने लगते। यहाँ तक कि उत्सव के एक सप्ताह पहले जब मि० जॉन सेवक ने प्रस्ताव किया कि घर के सब नौकरों और कारखाने के चपरासियों को एल्गिन मिल की बनी हुई वर्दियाँ दी जायँ,तो मि० ईश्वर सेवक ने मारे क्रोध के वह इञ्जील,जिसे वह हाथ में लिये प्रकट रूप से ऐनक की सहायता से, पर वस्तुतः स्मरण से, पढ़ रहे थे,अपने सिर पर पटक ली और बोले,या खुदा,मुझे इस जंगल से निकाल। सिर दीवार के समीप था, यह धक्का लगा, तो दीवार से टकरा गया। ९० वर्ष की अवस्था, जर्जर शरीर, वह तो कहो, पुरानी हड्डियाँ थीं कि काम देती जाती थीं,अचेत हो गये। मस्तिष्क इस आघात को सहन न कर सका,आँखें निकल आई,ओठ खुल गये और जब तक लोग डॉक्टरों को बुलायें, उनके प्राण-पखेरू उड़ गये! ईश्वर ने उनकी अंतिम विनय स्वीकार कर ली,इस जंजाल से निकाल दिया। निश्चय रूप से नहीं कहा जा सकता कि उनकी मृत्यु का क्या कारण था, यह आघात या गृह-दाह!

सोफिया ने यह शोक-समाचार सुना,तो मान जाता रहा। अपने घर में अब अगर किसी को उससे प्रेम था,तो वह ईश्वर सेवक ही थे। उनके प्रति उसे भी श्रद्धा थी। तुरंत मातमी वस्त्र धारण किये और अपने घर गई। मिसेज सेवक दौड़कर उससे गले मिलीं और माँ-बेटी मृत देह के पास खूब रोई।

रात को जब मातमी दावत समाप्त हुई और लोग अपने-अपने घर गये,तो मिसेज सेवक ने सोफिया से कहा-"बेटी, तुम अपना घर रहते हुए दूसरी जगह रहती हो,क्या यह हमारे लिए लज्जा और दुःख की बात नहीं? यहाँ अब तुम्हारे सिवा और कौन वली-वारिस है! प्रभु का अब क्या ठिकाना,घर आये या न आये, अब तो जो कुछ हो,