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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/५६८

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रंगभूमि


मिसेज सेवक-"रात को तो विवाह की बातचीत होती रही। मुझसे तैयारियाँ करने के लिए भी कहा। खुश-खुश सोई।"

जॉन सेवक-"तुम्हारी समझ का फर्क था। उसने तो अपने मन का भाव प्रकट कर दिया। तुमको जता दिया कि कल मैं न हूँगी। जानती हो, विवाह से उसका आशय क्या था? आत्मसमर्पण। अब विनय से उसका विवाह होगा; यहाँ जो न हो सका वह स्वर्ग में होगा। मैंने तुमसे पहले ही कह दिया था, वह किसी से विवाह न करेगी। तुमने रात को विवाह की बातचीत छेड़कर उसे भयभीत कर दिया। जो बात कुछ दिनों मे होती, वह आज ही हो गई। अब जितना रोना हो, रो लो; मैं तो पहले ही रो चुका हूँ।"

इतने में रानी जाह्नवी आई, आँखें रोते-रोते बीरबहूटी हो रही थीं। उन्होंने एक पत्र मि० सेवक के हाथ में रख दिया और एक कुर्सी पर बैठकर मुँह ढाँप, रोने लगीं।

यह सोफिया का पत्र था, अभी डाकिया दे गया था। लिखा था-"पूज्य माताजी आपकी सोफिया आज संसार से विदा होती है। जब विनय न रहे, तो यहाँ मैं किसके लिए रहूँ। इतने दिनों मन को धैर्य देने की चेष्टा करती रही। समझती थी, पुस्तकों में अपनी शोक-स्मृतियों को डुबा दूंँगी और अपना जीवन सेवा-धर्म का पालन करने में सार्थक करूँगी। किंतु मेरा प्यारा विनय मुझे बुला रहा है। मेरे बिना उसे वहाँ एक क्षण चैन नहीं है। उससे मिलने जाती हूँ। यह भौतिक आवरण मेरे मार्ग में बाधक है, इसलिए इसे यहीं छोड़े जाती हूँ। गंगा की गोद में इसे सौंपे देती हूँ। मेरा हृदय पुलकित हो रहा है, पैर उड़े जा रहे हैं, आनंद से रोम-रोम प्रमुदित है, अब शीघ्र ही मुझे विनय के दर्शन होंगे। आप मेरे लिए दुःख न कीजिएगा, मेरी खोज को व्यर्थ प्रयत्न न कीजिएगा। कारण, जब तक यह पत्र आपके हाथों में पहुँचेगा, सोफिया का सिर विनय के चरणों पर होगा। मुझे कोई प्रबल शक्ति खींचे लिये जा रही है और बेड़ियाँ आप-ही-आप टूटी जा रही हैं।

मामा और पापा से कह दीजिएगा, सोफी का विवाह हो गया, अब उसकी चिंता न करें।"

पत्र समाप्त होते ही मिसेज सेवक उन्मादिनी की भाँति कर्कश स्वर से बोली-"तुम्हीं विध की गाँठ हो, मेरे जीवन का सर्वनाश करनेवाली, मेरी जड़ों में कुल्हाड़ी मारनेवाली, मेरी अभिलाषाओं को पैरों से कुचलनेवाली, मेरा मान-मर्दन करनेवाली काली नागिन तुम्ही हो। तुम्ही ने अपनी मधुर वाणी से, अपने छल-प्रपंच से, अपने कूट-मंत्रों से मेरी सरला सोफी को मोहित कर लिया, और अंत को उसका सर्वनाश कर दिया। यह तुम्हीं लोगों के प्रलोभन और उत्तेजना देने का फल है कि मेरा लड़का आज न जाने कहाँ और किस दशा में है और मेरी लड़की का यह हाल हुआ। तुमने मेरे सारे मंसूबे खाक में मिला दिये।"