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रंगभूमि


तुम्हीं हो। हमने अगर कभी कड़ी बात कही होगी, तो तुम्हारे ही भले को कही होगी। कुछ तुम्हारी दुश्मन तो हूँ नहीं। अब अपने घर में रहो। यो आने-जाने के लिए कोई रोक नहीं है, रानी साहब से भी मिल आया करो;पर रहना यहीं चाहिए। खुदा ने और तो सब अरमान पूरे कर दिये,तुम्हारा विवाह भी हो जाता,तो निश्चित हो जाती। प्रभु जब आता,देखी जाती। इतने दिनों का मातम थोड़ा नहीं होता,अब दिन गँवाना अच्छा नहीं। मेरी अभिलाषा है कि अबकी तुम्हारा विवाह हो जाय और गर्मियों में हम सब दो-तीन महीने के लिए मंसूरी चलें।"

सोफी ने कहा-"जैसी आपकी इच्छा,कर लूंँगी।"

माँ-"और क्या बेटी, जमाना सदा एक-सा नहीं रहता,हमारी जिंदगी का क्या भरोसा। तुम्हारे बड़े पापा यह अभिलाषा लिये ही सिधार गये। तो मैं तैयारी करूँ?"

सोफिया-"कह तो रही हूँ।"

माँ-"तुम्हारे पापा सुनकर फूले न समायेंगे। कुँवर विनयसिंह की मैं निंदा नहीं करती,बड़ा जवाँमर्द आदमी था; पर बेटी, अपने धर्मवालों में करने की बात ही और है।"

सोफिया-"हाँ,और क्या।"

माँ-"तो अब रानी जाह्नवी के यहाँ न जाओगी न?” सोफिया-"जी नहीं,न जाऊँगी।"

माँ-"आदमियों से कह दूँ,तुम्हारी चीजें उठा लायें?"

सोफिया-"कल रानीजी आप ही भेज देंगी।"

मिसेज़ सेवक खुश-खुश दावत का कमरा साफ कराने गई।

मि० क्लार्क अभी वहीं थे। उन्हें यह शुभ सूचना दी। सुनकर फड़क उठे। बाँछे खिल गई। दौड़े हुए सोफिया के पास आ गये और बोले-"सोफी, तुमने मुझे जिंदा कर दिया। अहा! मैं कितना भाग्यवान् हूँ! मगर तुम एक बार अपने मुँह से मेरे सामने कह दो। तुम अपना वादा पूरा करोगी?"

सोफिया-“करूंगी।"

और भी बहुत-से आदमी मौजूद थे, इसलिए मि० क्लार्क सोफिया का आलिंगन न कर सके। मूंछों पर ताव देते,हवाई किले बनाते,मनमोदक खाते घर गये।

प्रातःकाल सोफिया का अपने कमरे में पता न था! पूछ-ताछ होने लगी। माली ने कहा,मैंने उन्हें जाते तो नहीं देखा, पर जब यहाँ सब लोग सो गये थे,तो एक बार फाटक के खुलने की आवाज आई थी। लोगों ने समझा,कुँवर भरतसिंह के यहाँ गई होगी, तुरंत एक आदमी दौड़ाया गया। लेकिन वहाँ भी पता न चला। बड़ी खलबली मची,कहाँ गई।

जॉन सेवक-"तुमने रात को कुछ कहा-सुना तो नहीं था?"