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रंगभूमि

जॉन सेवक—"यह बेल मुँढ़े चढ़ने की नहीं है। दो में से एक को दबना पड़ेगा।"

लोग घर पहुँचे, तो गाड़ी की आहट पाते ही ईश्वर सेवक ने बड़ी स्नेहमयी उत्सुकता से पूछा-“सोफी आ गई न? आ, तुझे गले लगा लूँ। ईसू तुझे अपने दामन में ले।"

जॉन सेवक-पापा, वह अभी यहाँ आने योग्य नहीं है। बहुत अशक्त हो गई है। दो-चार दिन बाद आवेगी।"

ईश्वर सेवक—"गजब खुदा का! उसकी यह दशा है, और तुम सब उसे उसके हाल पर छोड़ आये! क्या तुम लोगों में जरा भी मानापमान का विचार नहीं रहा! बिलकुल खून सफेद हो गया?"

मिसेज सेवेक-"आप जाकर उसकी खुशामद कोजिएगा, तो आवेगी! मेरे कहने से तो नहीं आई। बच्ची तो न कि गोद में उठा लाती?”

जॉन-सेवक-"पापा, वहाँ बहुत आराम से है। राजा और रानी, दोनों ही उसके साथ प्रेम करते हैं। सच पूछिए, तो रानी ही ने उसे नहीं छोड़ा।”

ईश्वर सेवक-"कुँवर साहब से कुछ काम की बातचीत भी हुई?”

जॉन सेवक—"जी हाँ, मुबारक हो। ५० हजार की गोटी हाथ लगी।”

ईश्वर सेवक—"शुक्र है, शुक्र है। ईसू मुझ पर अपना साया कर।" यह कहकर वह फिर आराम-कुर्सी पर बैठ गये।