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रंगभूमि


हैं कि वह मेरे साथ जा रही हैं। ऐसी दशा में अगर मैं उन्हें न ले गई, तो लोग अपने मन में क्या कहेंगे? सोचिए, इसमें मेरी कितनी हेठी होगी। मैं किसी को मुँह दिखाने लायक न रहूँगी।"

महेंद्र०-"बदनामी से बचने के लिए सब कुछ किया जा सकता है। तुम्हें मिस सेवक से कहते शर्म आती हो, तो मैं कह दूँ। वह इतनी नादान नहीं हैं कि इतनी मोटी-सी बात न समझें।"

इंदु-"मुझे उनके साथ रहते-रहते उनसे इतना प्रेम हो गया है कि उनसे एक दिन भी अलग रहना मेरे लिए असाध्य-सा जान पड़ता है। इसकी तो खैर परवा नहीं; जानती हूँ, कभी-न-कभी उनसे वियोग होगा ही; इस समय मुझे सबसे बड़ो चिन्ता अपनी बात खोने की है। लोग कहेंगे, बात कहकर पलट गई। सोकी ने पहले साफ इन्कार कर दिया था। मेरे बहुत कहने-सुनने पर राजी हुई थी। आप मेरी खातिर से अब की मेरी प्रार्थना स्वीकार कीजिए, फिर मैं आपसे पूछे बगैर कोई काम न करूँगी।”

महेंद्रकुमार किसी तरह राजी न हुए। इंदु रोई, अनुनय-विनय की, पैरों पड़ी, वे सभी मन्त्र फूंके, जो कभी निष्फल ही न होते; पर पति का पाषाण-हृदय न पसीजा; उन्हें अपना नाम संसार की सब वस्तुओं से प्रिय था।

जब महेंद्रकुमार बाहर चले गये, तो इंदु बहुत देर तक शोकावस्था में बैठी रही। बार-बार यही खयाल आता-सोफी अपने मन में क्या कहेगी। मैंने उससे कह रखा है कि मेरे स्वामो मेरी कोई बात नहीं टालते। अब वह समझेगी, वह इसकी बात भी नहीं पूछते। बात भी ऐसी ही है, इन्हें मेरी क्या परवा है। बातें ऐसी करेंगे, मानों इनसे उदार संसार में कोई प्राणी न होगा, पर वह सब कोरी बकवास है। इन्हें तो यही मंजूर है कि यह दिन-भर अकेली बैठी अपने नाम को रोया करे। दिल में जलते होंगे कि सोफी के साथ इसके दिन भी आराम से गुजरेंगे। मुझे कैदियों की भाँति रखना चाहते हैं। इन्हें जिद करना आता है, तो मैं क्या जिद नहीं कर सकती। मैं भी कहे देती हूँ, आप सोफी को न चलने देंगे, तो मैं भी न जाऊँगी। मेरा कर ही क्या सकते हैं, कुछ नहीं। दिल में डरते हैं कि सोफी के जाने से घर का खर्च बढ़ जायगा। स्वभाव के कृपण तो हैं ही। उस कृपणता को छिपाने के लिए बदनामी का बहाना निकाला है। दुखी आत्मा दूसरों की नेकनीयती पर सन्देह करने लगती है।

सन्ध्या-समय जब जाह्नवी सैर करने चलीं, तो इंदु ने उनसे यह समाचार कहा, और आग्रह किया कि तुम महेंद्र को समझाकर सोफी को ले चलने पर राजी कर दो। जाह्नवी ने कहा-“तुम्हीं क्यों नहीं मान जाती?"

इंदु—'अम्माँ, मैं सच्चे हृदय से कह रही हूँ, मैं जिद नहीं करती। अगर मैंने पहले ही सोफिया से न कह दिया होता, तो मुझे जरा भी दुःख न होता; पर सारी तैयारियाँ करके अब उसे न ले जाऊँ, तो वह अपने दिल में क्या कहेगी। मैं उसे मुँह नहीं दिखा सकती। यह इतनी छोटी-सी बात है कि अगर मेरा जरा भी खयाल होता,