पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१००

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प्रमेला

( १ )

प्रगतिशील साहित्य-संघ के उत्साही मन्त्री बोले---"इस बार होली में कुछ नवीनता होनी चाहिए। युग बीत गये, वही पुराना ढर्रा चला आ रहा है।"

"जी हाँ होली का त्यौहार किंचित मात्र भी प्रगतिशील नहीं है!" एक सदस्य बोला।

"त्योहार कोई भी प्रगतिशील नहीं है। होली में वही पुरानी बातें ---होली जलाओ, रङ्ग चलानो---बस!" दूसरे ने कहा।

"ठीक! अब यह देखना है कि होली में आगे बढ़ना कैसे सम्भव हो सकता है।"

"एक तरीका तो यह हो सकता कि होली का त्यौहार आगे बढ़कर मनाया जाय!"

"क्या मतलब?"

"मतलब यह है कि हम लोग फाल्गुल शुक्ल पूर्णमासी को होली न मनावें, आगे बढ़कर मनावें---अर्थात् चैत की पूर्णमासी अथवा अमावस्या को मनावें।"

परन्तु इसमें तो प्रगतिशीलता न रहेगी, वरन् पुरानी होली की तिथियों के बाद पड़ने से पिछड़ जायेगी।"

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