पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/११४

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"हाँ!"

"यह तो बड़े आश्चर्य की बात है।"

"अभी तुम बच्चे हो। तुम्हें इन बातों का क्या ज्ञान।"

"तो चाचा कहाँ जाओगे?"

चाचा ने एक स्थान बताया।

वह व्यक्ति बोला---"वह तो बड़ा भयानक स्थान है।"

चाचा हंँसकर बोले---"हाँ, तुम्हारे लिए तो ऐसा ही हैं। पर हमारे लिए कोई बात नहीं।"

"आपको भय नहीं लगता।"

"क्या बात करते हो। भय काहे का। यह तो साधारण बात है। हम शवसाधन कर सकते हैं।"

"वह क्या?"

"मुर्दे की छाती पर बैठ कर अनुष्ठान किया जाता है। यह सब तंत्र की साधनाएँ हैं---शवसाधन, लतासाधन।"

"तो रात को जाते होगे।"

"और नहीं क्या दिन में। रात में ग्यारह-बारह बजे।"

"अच्छी बात है---किसी दिन आपके साथ चलकर देखेंगे।"

"चक्र में सम्मिलित हो जाना।"

"चक्र क्या?"

"एक प्रकार का पूजन होता है।"

"जैसा आप कहेंगे करेंगे। तो हम सात रुपये आपको दे जायँगे। दीपावली को एक सप्ताह है।"

"बस उसी दिन सब काम हो जायगा।"

"बस ठीक है।"

( ३ )

उस व्यक्ति ने सात रुपये नत्थू चाचा को दे दिये।

दीपावलो का दिन आया। नत्थू चाचा ने पूजन का सब समान