पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१३२

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"लड़की भी तो हैं सामने।"

"हाँ! लड़की का भी ब्याह करना होगा। तब तक भगवान कुछ न कुछ उपाय कर ही देंगे।"

"हाँ, हम गरीबों को तो उन्हीं का भरोसा है।"

( ३ )

रायबहादुर साहब के यहाँ संध्या-समय नित्य की भांति मिन-मंडली जमा थी। दौर चल रहा था। सहसा रायबहादुर की मण्डली का विदूषक ब्रजनन्दन बोला---"आपकी कितनी उम्र है बाबू जी!"

"बाबूजी तुम्हारे बाप लगते हैं क्या?" दर महाशय ने हंसते हुए कहा।

"हाँ मामा, तुम ऐसा ही समझो।"

रायबहादुर ने हंसते हुए पूछा---"क्यों, उम्र क्या करोगे पूछ के?"

"आपका ब्याह करायगा।" महेन्द्रसिंह बोला।

"खैर हम कुछ करेंगे---आप बताइये तो।"

“पचास में एक महीना कम है।"

"बस बन गई बात।"

"क्या बन गई, अपनी बुढ़िया भेड़ेगा क्या?"

"तुमने जो अपनी अम्मा को निकाल दिया है---अनाथालय में पड़ी है। उसी के लिए बात चीत है। समझे चिरंजीव!" ब्रजनन्दन ने गम्भीरतापूर्वक कहा।

रायबहादुर साहब बोले---"खैर, मजाक न करो, बात बताओ-- उम्र क्यों पूछो! बीमा-एजेण्ट बन गये क्या।"

"अजी यह बीमाँ-एजेण्ट है, बीमा-एजेण्ट नहीं है।"

"हम आपका 'गोल्डेन जुबली' मनायगा।"

यह बात सुनते ही सबके कान खड़े हुए। एडवोकेट साहब उठकर खड़े हो गये और बोले---"भई क्या बात कही है तुमने ब्रजनन्दन! जी