"तो साफ कर दो---तराजू-बाँट आज ले आऊँगा। और क्या चाहिए?"
"बस! एक-दो कटोरे या कूड़ियाँ हों।"
"कूँड़ियाँ मिट्टी की ले आना।"
"हाँ! मट्टी को भी काम दे जायँगी।"
"और"
"और एक पाँच-छः रुपये।"
"क्या लगायगा?"
"अभी तो पट्टी लगाऊँगा। पाँच रुपये जमा करने पड़ेंगे। रोज पट्टी ले आया करूंगा।"
"अच्छी बात है। लेकिन यह याद रखना कि अगर तुमने ठीक से काम न किया तो मैं बुरी तरह पेश आऊँगा।"
"नहीं चाचा! देखना तो कैसे करता हूँ।"
"कितनी बचत हो जाया करेगी।"
"रुपये बारह पाने की बचत होगी।"
"हूँ! अच्छा आज तुम अपना सब ठीक-ठीक कर लो। मैं बाँट लाये देता हूँ।"
श्यामसिंह ने अपने एक परिचित से दस रुपये लेकर रामसिंह का सामान दुरुस्त कर दिया।
पहले दिन रामू ने पाठ आने पैदा किये। दूसरे दिन बारह आने! इस प्रकार नित्य ही आठ आने से लेकर एक रुपए तक की आय होने लगी। रामू के माता-पिता बहुत प्रसन्न थे।
एक दिन श्यामसिंह पत्नी से बोला---"रामू भगवान चाहे तो दिन दिन तरक्की करेगा। दो रुपये रोज लाने लगे तो मैं नौकरी छोड़ दू---अब मुझ से काम नहीं होता। बड़ी थकावट आ जाती है।"
"देखो! भगवान की मरजी होगी तो पैदा ही करने लगेगा।"
"इसका ब्याह भी हो जाय। बस अपना कमाय-खाय।"